Abhishar Ganguly   (अभि:एकतन्हामुसाफ़िर)
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Joined 2 December 2017


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AN HOUR AGO

शिकायतों के अंबार पड़े हैं पास हमारे, पर "प्यार" भी ज़रूरी है।
जो दिल-ओ-दिमाग़ को ताजगी से भर दे वो खुमार भी ज़रूरी है।

हाँ, ठीक है कि "अपने साथ" ही काट ली जाएगी तमाम ज़िंदगानी।
पर उम्र के "आख़िरी पड़ाव में" एक सच्चा "यार" भी तो ज़रूरी है।

जी लिए ताउम्र "दुनिया के हिसाब से" हर पल घूट-घूट कर के हम।
जहाँ पर अपने नियम हो, "अपने कानून हो" वो संसार भी ज़रूरी है।

जानता हूँ कि बहुत ही ज़्यादा दर्द मिला है तुम्हें "और भी" झेल लोगे।
पर तुम्हारे साथ जो हर स्थिति में खड़ी रहे वो जोड़ीदार भी ज़रूरी है।

"बे लगाम घोड़े हो तुम" जानते हैं हम, ता उम्र अपने हिसाब से जिया।
पर आकर के जो तुम्हें जीना सिखाए साथी वो सरकार भी ज़रूरी है।

बुरा वक़्त हर बार अच्छा वक़्त लाने के लिए ही आता है याद रखना।
सफ़लता को तुम संभाल सको इसलिए वक़्त के वार भी ज़रूरी है।

जीवन में जो तकलीफ़ समस्या नहीं आती हैं तो "बोरियत" लगती हैं।
जीवन में समस्याओं के साथ उत्पन्न स्थिति "धुआँधार" भी ज़रूरी है।

जो सब तुम्हारी तारीफ़ें ही करेंगे "अभि" तो आत्ममोह में पड़ जाओगे।
इसलिए धरातल पर रखने के लिए एक सच का पहरेदार भी ज़रूरी है।

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2 HOURS AGO

वोट की ताक़त को पहचानो, चुनाव में अपने चुनाव की ताकत को जानो।
अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा, कौन क्या करेगा ये बाद में,
पहले क्या किया है आज तक इस बात पर उसको और उसकी बात को मानो।
मैं नहीं कहता कि इसको दो या उसको दो, मैं ये कहता हूँ कि पहले आँकलन करो
उसके बाद तुम्हारे लिए जो भी सही हो तुम उसको ही चुनने की ठानो।
कि कल फिर किसी से लेकर के शराब और दो वक़्त के खाने की वज़ह से
बेचना न पड़े तुम्हें "तुम्हारा मत" विचार-विमर्श करो इस बात पर
फिर उस इंसान को "मत" दो और अपनी महत्वता पहचानो।
हाँ, एक बात ये भी सही है कि बहुत बड़े गड्ढे को
भरने में थोड़ा सा ज्यादा समय लगता हैं इसलिए
जिसे एक बार पसंद किया है उसे थोड़ा सा और
समय दो और अपनी पसंद की हर एक बात को मानो,
और अपने मत के अधिकार की शक्ति को पहचानो।

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21 HOURS AGO

अलविदा मत कहो, अक्सर फिर मिलेंगे की आदत होनी चाहिए।
चाहे कैसी भी खटास हो "सुलझाव" की "उम्मीद" होनी चाहिए।

जिस एक लम्हें में आप अपने सारे "गिले-शिकवे" भूल सकते हो।
हमारे "जीवन के हरेक लम्हें" में एक ऐसी स्थिति होनी चाहिए।

कोई ग़लत करें या सही उसका किरदार समझकर भूल जाओ।
अगर आगे बढ़ना है तो मन में क्षमा की मनस्थिति होनी चाहिए।

हर दिन मुमकिन न हो तो साल में कम से कम एक बार ही सही।
परिवार के सभी बड़े और छोटे सदस्यों की बैठकी होनी चाहिए।

ग़लत को जो ग़लत और सही को बेझिझक सही कह सके मुर्शद।
मेरे हिसाब से एक जीवित इंसान में इतनी तो शक्ति होनी चाहिए।

लाख पत्थर कर लो दिल-ओ-दिमाग़ को तुम अपने ओ मेरे यारा।
बस किसी मज़लूम के दर्द से जो आए आँखों में नमी होनी चाहिए।

जन्म देने वाले माता-पिता के लिए जो स्वर्ग भी त्याग दें "अभि"।
कि मेरे हिसाब से "एक सुपुत्र में" इतनी तो "भक्ति" होनी चाहिए।

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18 APR AT 21:40

ज़िंदगी को लिख रहे हैं, मर मर के हम जीना सीख रहे हैं।
जुबां ख़ामोश है पर मेरा दिल मेरी रूह अरमां चींख रहे हैं।

वो यूँ तो चले गए हैं हमको कब का छोड़ कर के मेरे यारों।
दीवाने की दीवानगी तो देखो, हमको अब भी दिख रहे हैं।

कहने को अरसे पहले जा चुका है वो मुदत्तों से तन्हा है हम।
पर उनके याद-ए-इश्क़-ए-बारिश में हम आज भी भींग रहे है।

वो कहते हैं क़िस्मत में जो लिखा हुआ है वहीं होकर के रहेगा।
फिर भी अपनी मेहनत के दम हम अपनी तक़दीर लिख रहे हैं।

हम सबकी ज़िंदगी में कुछ लोग होते हैं जिनको हम खटकते हैं।
हमारी मेहनत और रब की रहमत के दम पर उनको दिख रहे हैं।

उसके दर पर जाकर तो हर कोई झोली फैलाता ही है "अभि"।
कोई कितना भी बड़ा हो रब के आगे हमसब माँग भीख रहे हैं।

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18 APR AT 15:30

मत कहो कि समय नहीं है, समय तो निकालना पड़ता हैं।
जो ज़रूरी है उस ख़्वाब के लिए रात भर जागना पड़ता हैं।

कोई भी काम आसान या मनपसंद कहाँ ही होता हैं साथी।
हमें स्वयं को उस कार्य-स्थिति अनुसार ढालना पड़ता हैं।

पैसा कोरी, धन दौलत ज़रूरी है बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी है।
पर अपने मन की शांति को भी हमें पहचानना पड़ता हैं।

मन ख़ुश हो तो सब कुछ बड़ा ही सुहावना सा लगता हैं।
इस मन के लिए हमें अपने जीवन को सँवारना पड़ता हैं।

कोई भी जन्मजात किसी विधा में दक्ष बनकर नहीं आता।
जाँच व प्रयास कर अपनी प्रतिभा को पहचानना पड़ता हैं।

मार-पीट, हल्ला-गुल्ला से आज तक बस काम बिगड़े ही है।
इसलिए समझदारी और प्यार से सबको मनाना पड़ता हैं।

अपने अपने हिसाब से तो ताउम्र ही जीते रहते हैं हम सब।
पर कोई आए जीवन में तो हमें थोड़ा सा बदलना पड़ता हैं।

नाम बनाना काम करना तो ताज़िंदगी चलता रहेगा "अभि"।
जीवन किसी संग जीने के लिए भी वक़्त निकालना पड़ता हैं।

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17 APR AT 12:34

राम हमारे प्राण, राम हमारी शक्ति, राम ही हमारा अभिमान है।
"राम से है सब कुछ जगत में", राम पर तो सब कुछ क़ुर्बान है।
राम जीवन, राम तन-मन, राम ही मेरी संपत्ति राम मेरा धन है।
राम से ही है शाश्वत हर एक कण-कण, राम ही मेरा जीवन है।
राम प्रेम है, राम "मर्यादा" है, राम मेरे इस जीवन का आधार है।
राम है तो सब खिलखिलाता है, राम बिन सर्वस्व "निराधार" है।
राम है तो विपदा कुछ भी नहीं, जो राम है तो सब कुछ सुंदर है।
बाहर कहाँ ढूँढते फिरते हो मेरे राम को, राम हम सबके अंदर है।
राम कर्म है, राम कर्तव्य है, वचन है, राम स्वपत्नी का सम्मान है।
राम से ही तो जगत में सुरक्षित सभी जीव का "आत्मसम्मान" है।
राम देव है, राम पुरुष है, राम "देवपुरुष" का जीवंत उदाहरण है।
राम यहाँ है, राम वहाँ, राम "सर्वत्र विद्यमान" हैं, निर्मल उच्चारण है।
राम की लीला "अपरंपार" है "अभि" राम से हमारा संबंध पितृय है।
राम के बारे में मैं क्या कहूँ, बस इतना जान लो वो "अद्वितीय" है।

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16 APR AT 23:12

रात चुपके से आई और आकर मेरी नींद चुरा गई।
रात चुपके से आई और आकर सारी बात बता गई।

रात चुपके से आई और आँखों में ख़्वाब सजा गई।
रात चुपके से आई और मेरे सारे "ख़्वाब जगा गई।"

रात चुपके से आई, बातों ही बात में बात बढ़ा गई।
रात चुपके से आई और इश्क़ की सौगात दिला गई।

रात चुपके से आई और आकर के सन्नाटा बढ़ा गई।
रात चुपके से आई और शोर की ख़ामोशी बढ़ा गई।

रात चुपके से आई और मेरे ऊपर यादें बरसा गई।
रात चुपके से आई और आके मुझे और तरसा गई।

रात चुपके से आई और मुझे दिन की याद करा गई।
रात चुपके से आई और मुझे दिन के लिए तरसा गई।

रात चुपके से आई और मेरी आँखों में आँसू बसा गई।
रात चुपके से आई और मेरे हिस्से के आँसू बहा गई।

रात चुपके से आई और मुझे दिन के क़िस्से सुना गई।
रात चुपके से आई और मुझे दिन के लिए मना गई।

रात चुपके से आई "अभि" और चुपचाप सब बता गई।
रात एक बार फिर आई और आकर के दिल जला गई।

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16 APR AT 21:19

ख़्वाब तुम्हारे सारे मुकम्मल मैं करूँगा।
तुम्हारे आज को अपना कल मैं करूँगा।

तुमको अपना अब हमसफर मैं करूँगा।
तेरे संग "ताउम्र जीवन बसर" मैं करूँगा।

तेरी स्याह रात को उजला सहर मैं करूँगा।
तेरे लिए अपनी आँखों को तर मैं करूँगा।

तेरे दिल को सनम अपना घर मैं करूँगा।
"मेरी जान" को तुझमें "बसर" मैं करूँगा।

आज से इंतज़ार तेरा उम्र भर मैं करूँगा।
प्रशांत महासागर से गहरा सबर मैं करुँगा।

रात की नींद जो तुझको नज़र मैं करूँगा।
तुझको अपना लख्त-ए-जिगर मैं करूँगा।

तन्हाई के हर दर्द को बेअसर मैं करूँगा।
ख़ुद को एक रूहानी सुख़नवर मैं करूँगा।

तेरे सिवा किसी और को न रहबर मैं करूँगा।
तेरे सजदा अपना दिल निकालकर मैं करूँगा।

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16 APR AT 18:15

किससे भागते फिरते हो तुम, अपने अंदर के भगवान का क्या?
दुनिया से लाख झूठ बोल लोगे तुम, पर अपने ईमान का क्या?

अगर कोई और कुछ नहीं भी देखता है तो क्या हुआ मेरे दोस्त।
तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हारे ज़मीर और तुम्हारे गिरेबान का क्या?

बाहर की बहारों को नोच खाया तुमने बेखौफ़ होकर के मुर्शद।
कुछ सालों के बाद जो खिलेगी उस कमसिन बागबान का क्या?

वो कहते हैं कि एक मयान में दो तलवार नहीं रह सकते हैं।
पर एक आत्मा के दो हिस्से वाले जिस्म रूपी मयान का क्या?

मरोड़ कर नेस्ता नाबूत तो कर दिया तुमने उस पौधे को।
पर सोचो उससे जो मिल सकत था उस सागवान का क्या?

लोग अक्सर पूछते रहते हैं कि तन्हा क्यूँ रहता हूँ मैं आजकल।
उन्हें कोई बताए दोस्त अपने साथ रखते हैं उस कृपाण का क्या?

सारा जीवन सबकी मेजबानी करते हुए बीत गया मेरा यूँही।
उसके घर जाकर जिसकी बेइज्जती हुई उस मेहमान का क्या?

जब ख़ुद पर आती हैं तो कहते हो कि हमारे में दहेज नहीं देते।
जो तुम्हारे घर आएगी सब छोड़ उस कन्या के कन्यादान का क्या?

तुमसे कोई ऊँची आवाज़ में बात करें तो आग बबूला हो जाते हो।
उसको जो अपशब्द कहे है तुमने उसके आत्मसम्मान का क्या?

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16 APR AT 11:05

शिष्टाचार विनम्रता से ही बनता है हम सब का जीवन।
मेहनती लोगों को नहीं करना होता हैं कभी भी चिंतन।

ध्यान करने वालों के पास नहीं होती कोई भी उलझन।
सत्यमार्ग पर चलते जाओ, जीवन बन जाएगा मधुवन।

आत्म संतुष्टि से बढ़कर कोई भी नहीं है इस जग में धन।
सत्यवादिता एक बड़ा ही अनूठा गुण सा है मेरे बंधु गण।

सत्य वचन कहने वालों के साथ अक्सर हो जाती अनबन।
पर आप चिंता मत करना जब तक साफ़ हो आपका मन।

"कर्म योग" करने वालों के लिए नहीं होता है कोई बंधन।
उनके लिए कर्म को समर्पित होता हैं "तन, मन और धन"।

उदास मत हो साथी अच्छा हो जाता हैं स्वतः ही ये जीवन।
जब हो जाता हैं अच्छे लोगों का आपके जीवन में आगमन।

मन में जो निश्छल, सात्विक व आत्मिक प्रेम हो "अभि"।
फिर तो घर में ही मिल जाता हैं सबको अपना "वृंदावन"।

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