Abhinav Singh   (अभिनव सिंह "सौरभ")
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Joined 6 March 2018


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11 DEC 2021 AT 17:38

जो अजर अमर अविनाशी है
वो काशी है

भोले के बसते जहाँ प्राण
जो चिर नवीन है चिर पुराण
इस क्षण जीवन का है प्रमाण
उस क्षण माया, आभासी है
वह काशी है

जो अजर अमर अविनाशी है
वह काशी है

पाप पुण्य का प्रणय जहाँ
गंगा के निर्मल तट पर
सुख दुःख विलीन हो जाते हैं
बुद्धत्व उपजता है वट पर
जिसके कण-कण में अमिय भरा
और जो विष की प्यासी है
वो काशी है

जो धरा धर्म के साधन की
मन मस्तिष्क के प्रक्षालन की
जो एक रूप में फक्कड़ तो
दूजे में भोग-विलासी है
वह काशी है

जो अजर अमर अविनाशी है
वो काशी है

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11 DEC 2021 AT 7:04

लम्हा-लम्हा  नाम  तुम्हारे,
मेरे सुबह-ओ-शाम तुम्हारे
चाहा है  बस चलते जाना,
इन हाथों को थाम तुम्हारे

तुम मंदिर, मस्जिद,गुरुद्वारे
तुम ही सूरज, चाँद, सितारे
एक  तुम्हारी मूरत  मन  में
एक  तुम्हीं  हो धाम  हमारे

लम्हा- लम्हा  नाम  तुम्हारे,
मेरे सुबह-ओ-शाम तुम्हारे

तुम खुशबू हो तुम्हीं रंग हो
तुम वीणा तुम ही मृदंग हो
तुम ही आँखों का पानी और
होठों  की  मुस्कान  हमारे

लम्हा- लम्हा  नाम  तुम्हारे,
मेरे सुबह-ओ-शाम तुम्हारे

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7 DEC 2021 AT 11:15

छलिया जग है, यहाँ हमेशा लगा रहेगा मेला रे
एक एक कर छोड़ जायेंगे तुझको सभी अकेला रे

जोड़ जोड़ कर क्या पायेगा
कुछ भी साथ नहीं जायेगा
पानी से उपजा एक बुलबुला
फिर पानी में मिल जायेगा
माटी है तन माटी जीवन, धन, दौलत सब खेला रे
एक एक कर छोड़ जायेंगे तुझको सभी अकेला रे

टूट टूट कर घट बिखरेंगें
पर मधुशाला गुलजार रहेगी
झर जायेंगे फूल शाख़ से
फिर भी बागों में बहार रहेगी
भौरों की गुंजार रहेगी, होगा साकी अलबेला रे
एक एक कर छोड़ जायेंगे तुझको सभी अकेला रे

यही रीति है जीवन की
रोयेगीं रातें , धूप हँसेगी
सूनी होगी माँग चाह की
स्वप्न की डोली सजा करेगी
सागर का प्यासा तट होगा, होगा लहरों का रेला रे
एक एक कर छोड़ जायेंगे तुझको सभी अकेला रे

छलिया जग है यहाँ हमेशा लगा रहेगा मेला रे
एक एक कर छोड़ जायेंगे तुझको सभी अकेला

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23 JUL 2021 AT 22:20

चाँद पूरा है खलां में आज
आज सो हम भी खलां में हैं

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22 JUL 2021 AT 12:17

तुम कहती हो- आजकल
"रातभर जगती हूँ मैं"
तो बताओ कि कल रात
आसमां में कितने सितारे थे?

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22 JUL 2021 AT 11:21

फिर संगम पे आया हूँ
फिर तेरी याद आयी है

फिर डूबा हूँ लहरों में मैं
फिर आँखें भर आयी है

रेत छूकर के यूँ लगा है कि
इनसे पहले से शनासाई है

फिर वही दिन, हों फिर वही शामें
हसरत सी जग आयी हैं

इक तू ही है हर सू यहाँ
जिस ओर भी बीनाई है

हमसे न पूछो हाल-ए-दिल
बस तन्हाई ही तन्हाई है

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19 JUL 2021 AT 21:50

इश्क़ में मुँह मोड़ना, ये बात गलत है।
प्यार कर के छोड़ना, ये बात गलत है।

जो निभा सको नहीं, वो वादा न करो तुम
वादा कर के तोड़ना, ये बात गलत है।

टूटना उम्मीद का, दस्तूर-ए-दह़र है
उम्मीद फिर न जोड़ना, ये बात गलत है

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19 JUL 2021 AT 21:42

कहते हैं कि उनकी कोई कीमत नहीं रही,
जिनके दिलों में आदमीयत नहीं रही।

सूरत नहीं तो क्या, सब कुछ तो है, मगर
कुछ भी नहीं रहा अगर सीरत नहीं रही।

लाख मढ़ लें चाँद वो पेशानी पे अपनी,
दुनिया में उनकी वो जीनत नहीं रही।

ऐसा नहीं कि हुस्ऩ का दीदार न हुआ,
पर इश्क़ करने की तबीयत नहीं रही।

यूँ तो हजारों चाबियों का राज हम पे था,
लूटें तिजोरियाँ कभी ये नीयत नहीं रही।

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19 JUL 2021 AT 19:17

जाने क्यों इन आँखों की लाली नहीं जाती
कहते हैं लोग इश्क़ की ख़याली नहीं जाती

तुमने भुला दिया सनम हर लम्हा प्यार का
हमसे तुम्हारी दी घड़ी भी निकाली नहीं जाती

पहले तो गम-ए-इश्क़ में बस रातें मुहाल थीं
अब दिन की बेक़शी भी, टाली नहीं जाती

इक माँ का प्यार पाक है दुनिया में इसलिये
माँ की दी दुआ कभी, खाली नहीं जाती

कुछ तो हो ईलाज इस मर्ज़ का "सौरभ"
अब हमसे ये वहशत भी, सम्भाली नहीं जाती

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19 JUL 2021 AT 15:45

महज़ गिनती में हैं चैन से सोयी गयी रातें।
बाकी तुम्हारी याद में, खोयी गयी रातें।

तन्हा जमीं पर सितारों के निगहबां,
टूटे हुए मन से कभी, ढोयी गयी रातें।

बीते हुये कल की किसी तस्वीर से लिपटी,
ख़्वाबों की रेह में, बोयी गयी रातें।

करवटें बदल-बदल, तब हुयी सुबह,
जब यादों के तवे पर, पोयी गयी राते।

मत पूछो कि हमने कैसे-कैसे गुजारी है,
तकिये पे रख के सिर, रोयी गयी रातें।

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