दर के बाहर खड़ा तेरा दीवाना तरसता है दीदार-ए-यार को और सनम मेरा इतराता है अपने हुस्न-ओ-रुबाब पर। - ARSH
दर के बाहर खड़ा तेरा दीवाना तरसता है दीदार-ए-यार को और सनम मेरा इतराता है अपने हुस्न-ओ-रुबाब पर।
- ARSH