24 JAN 2019 AT 9:28

शिकारियों के शहर में अब इंसान कहाँ मिलेगा,
बुतों के शहर में अब भगवान कहाँ मिलेगा।

दफ्तरों के चौकट्ठे में सिमट के रह गयी है दुनिया,
वो बचपन के दोपहर सा खुला आसमान कहाँ मिलेगा।

यहाँ हर शख़्स क़ैद है धूल के गुबारों में,
वो गाँव की आबो-हवा का मज़ा कहाँ मिलेगा।

ऐश-ओ-आराम का मुलाज़िम बन गया है ये जिस्म,
उन कच्ची-पक्की मेड़ो पे चलने का अब नज़ारा कहाँ मिलेगा।

निकले थे गाँव से एक घर की तलाश में,
इन ऊंची इमारतों में तुम्हे अपना मकान कहाँ मिलेगा।

- Aayush Snigdha Paul (कातिब)