Ganesh Das   (Ganesh Das)
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Joined 8 May 2018


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24 JUN 2021 AT 23:50

किताबों के पन्ने कोरे हैं
बच्चे गर खोलें
तो उसे समझे खिलौने है
किताबों के पन्ने कोरे हैं

किताबों के पन्ने कोरे हैं
लेखक गर खोलें
तो ये समझे की जिंदगी खिलौने है
किताबों के पन्ने कोरे हैं

किताबों के पन्ने कोरे हैं
वैद्य गर खोले
तो ये समझे की दर्द खिलौने है
किताबों के पन्ने कोरे हैं

किताबों के पन्ने कोरे हैं
नेता गर खोले
तो ये समझे की इंसान खिलौने है
किताबों के पन्ने कोरे हैं

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8 JUL 2020 AT 21:49

रो रही बारिश है
और बिखर रही है बूंद
मोतियों सी दिख टूट रही है खुद

छोटी नदियां बन रही
इधर-उधर बह रही
एकठ्ठा फिर हो रही लेके गहरी सोच

बांस के घर में
काली पन्नी के ऊपर
छोटी तालाब अब बन गई है उसपर

मानो कैद होगई है
थोड़ी मैली होगई है
ग़लत घर में ब्याही जैसे औरत होगई है

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23 JUN 2020 AT 15:50

लच लच
लच-लचाता हुआ पुल

धक धक
धक-धकाता हुआ दिल

मर मर
मर-मराता हुआ स्वन

थर थर
थर-थराता हुआ पग

डर डर
डर-डराता हुआ मन

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21 JUN 2020 AT 16:28

𝑲𝒉𝒆𝒆𝒏𝒄𝒉𝒂-𝒌𝒉𝒆𝒆𝒏𝒄𝒉𝒂 𝒔𝒂 𝒎𝒂𝒏 𝒉𝒂𝒊
𝑻𝒉𝒂𝒌𝒆-𝒕𝒉𝒂𝒌𝒆 𝒔𝒆 𝒑𝒂𝒍𝒌𝒆𝒏
𝑪𝒉𝒖𝒃𝒉𝒂𝒕𝒊 𝒉𝒖𝒊 𝒂𝒂𝒏𝒌𝒉𝒆𝒏
𝑲𝒖𝒄𝒉 𝒔𝒉𝒂𝒂𝒎 𝒌𝒊 𝒚𝒂𝒂𝒅𝒆𝒊𝒏
𝑼𝒔 𝒈𝒉𝒐𝒐𝒏𝒕 𝒌𝒐 𝒑𝒆𝒆𝒕𝒂
𝑱𝒂𝒊𝒔𝒆 𝒌𝒐𝒊 𝒄𝒉𝒂𝒊 𝒌𝒆 𝒉𝒐 𝒂𝒂𝒅𝒂𝒕𝒆𝒊𝒏

𝑱𝒉𝒊𝒍-𝒎𝒊𝒍 𝒌𝒂𝒓𝒂𝒕𝒂 𝒎𝒂𝒊𝒏 𝒃𝒂𝒂𝒕𝒆𝒊𝒏
𝑲𝒂𝒃𝒉𝒊 𝒎𝒆𝒕𝒉𝒆𝒆 𝒕𝒐 𝒌𝒂𝒃𝒉𝒊 𝒌𝒉𝒂𝒕𝒕𝒂-𝒔𝒆
𝑴𝒖𝒔𝒌𝒂𝒂𝒕𝒂 𝒉𝒖𝒂 𝒂𝒂𝒓𝒐𝒑 𝒂𝒖𝒓 𝒅𝒂𝒓𝒅 𝒃𝒉𝒂𝒓𝒂 𝒏𝒊𝒓𝒐𝒑
𝑽𝒐 𝒅𝒉𝒂𝒍𝒂𝒕𝒂 𝒉𝒖𝒂 𝒔𝒐𝒐𝒓𝒂𝒋
𝑽𝒐 𝒎𝒊𝒋𝒉𝒂𝒓𝒂𝒂𝒕𝒂 𝒉𝒖𝒂 𝒎𝒆𝒓𝒂 𝒃𝒐𝒍
𝑱𝒂𝒊𝒔𝒆 𝒌𝒐𝒊 𝒄𝒉𝒂𝒊 𝒖𝒃𝒂𝒍𝒂𝒕𝒂 𝒉𝒐 𝒉𝒂𝒓 𝒓𝒐𝒛

𝑺𝒖𝒔𝒖𝒌-𝒔𝒖𝒔𝒖𝒌𝒂𝒕𝒂 𝒉𝒖𝒂 𝒎𝒆𝒓𝒂 𝒌𝒂𝒂𝒏
𝑲𝒐𝒊 𝒄𝒉𝒊𝒌𝒉 𝒅𝒉𝒖𝒅𝒂𝒕𝒊 𝒉𝒐 𝒑𝒂𝒉𝒂𝒄𝒉𝒂𝒂𝒏
𝑱𝒂𝒊𝒔𝒆 𝒌𝒐𝒊 𝒅𝒓𝒊𝒔𝒉𝒚𝒂
𝒄𝒉𝒉𝒂𝒑𝒂 𝒉𝒐 𝒑𝒂𝒓𝒂𝒅𝒐𝒏 𝒑𝒂𝒂𝒓
𝑩𝒉𝒐𝒐𝒍-𝒃𝒉𝒖𝒍𝒂𝒊𝒚𝒂 𝒋𝒂𝒊𝒔𝒆 𝒓𝒂𝒂𝒔𝒕𝒆
𝑱𝒊𝒔𝒂𝒎𝒆𝒏 𝒉𝒂𝒓 𝒌𝒐𝒊 𝒅𝒖𝒗𝒊𝒅𝒉𝒂 𝒎𝒆𝒊𝒏 𝒉𝒐 𝒋𝒂𝒂𝒕𝒆
𝑲𝒉𝒐𝒍𝒂𝒕𝒆-𝒖𝒃𝒂𝒍𝒂𝒕𝒆 𝒈𝒊𝒓 𝒏𝒆𝒆𝒄𝒉𝒆
𝑱𝒂𝒊𝒔𝒆 𝒌𝒐𝒊 𝒄𝒉𝒂𝒊 𝒉𝒐 𝒂𝒂𝒈 𝒃𝒖𝒋𝒉𝒂𝒂𝒕𝒆

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21 JUN 2020 AT 1:36

• | चाय की शाम | •
खींचा-खींचा सा मन है
थके-थके से पलकें
चुभती हुई आंखें
कुछ शाम की यादें
उस घूंट को पीता
जैसे कोई चाय की हो आदतें

झिल-मिल करता मैं बातें
कभी मीठी तो कभी खट्टा-से
मुस्काता हुआ आरोप और दर्द भरा निरोप
वो ढलता हुआ सूरज
वो मिझराता हुआ मेरा बोल
जैसे कोई चाय उबलता हो हर रोज़

सुसुक-सुसुकता हुआ मेरा कान
कोई चीख धुड़ती हो पहचान
जैसे कोई दृश्य छपा हो परदों पार
भूल-भुलैया जैसे रास्ते जिसमें हर कोई दुविधा में हो जाते
खोलते-उबलते गिर नीचे
जैसे कोई चाय हो आग बुझाते

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20 JUN 2020 AT 23:10

मैंने तुझे देखा
तूने मुझे देखा
हम ने एक दूसरे को प्यार में देखा

मैंने तुझे बोला
तूने मुझे बोला
हम ने एक दूसरे को "आई लव यू" बोला

मैंने आंख मारा
तूने मुझे मारा
हम ने एक दूसरे को प्यार से मारा

मैंने तुझे बुलाया
तूने मुझे बुलाया
हम ने एक दूसरे को थोड़ा और करीब बुलाया

मैंने तुझे पकड़ा
तूने मुझे पकड़ा
और हम दोनों को सारे मोहल्ले वालों ने पकड़ा

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17 JUN 2020 AT 14:28

• | आज-कल | •
व्याकुलता की बेड़ियों से बंधा सोच
भविष्य की खोज में धुंडे "इज्योत"

आंखें मुन जांचे अपना कल
अन्न त्याग धर मौन

"शोक" रहे हो अपना आज-कल
तुम बैठे हो क्यों, किसी के आस तर

जैसे जीना है आज
वैसा "अब" बना लो

उठो और कहो
उठो और बस एक कदम, आगे बढ़ा लो।

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15 JUN 2020 AT 20:40

बहुत कम काम किया है, पर उम्दा किया है
ना कोई बड़ा पुरस्कार, केवल दिलों को जीता है
दर्द इस बात का है कि, बहुत जल्द ही भुला दिए जाओगे।

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12 JUN 2020 AT 1:52

Books are lost these days
From my life
No longer mind
To read again

As now she sees me from afar
Like I know myself, every page of it.

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12 JUN 2020 AT 1:41

किताबें आज-कल गुम हो गई है
मेरी ज़िन्दगी से
अब मन नहीं करता
दोबारा पढ़ने को

बस अब दूर से मुझे वो देखती है
जैसे मैं खुद जानता हो, उसके हर पन्ने को।

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