मैं यहां ध्यान सिखा रहा हूं, प्रेम सिखा रहा हूं, उत्सव सिखा रहा हूं, होली सिखा रहा हूं, दीवाली सिखा रहा हूं, यह शिक्षा नहीं है मेरा शिक्षा का अर्थ है : जो तुम्हारे भीतर दबा है, जो तुम्हारा स्वभाव है, उसे उभारा जाए। ऊपर से न थोपा जाए, जगाया जाए। वास्तविक शिक्षण तुम्हारी सोई हुई आत्मा को जगाने की प्रक्रिया है।
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जब कोई प्रसन्न होता है, सुख से भरा होता है, कल की बात ही नहीं उठाता। न बीते कल की उठाता है, न आने वाले कल की उठाता है। दोनों गए। दोनों गिरे उसकी नजर से। आज इतना भरा-पूरा है, ऐसे कमल खिले हैं प्राणों में, ऐसा नाच उठा है, ऐसे नृत्य की घड़ी आयी, कौन फिकर करता है कल थे भी कि नहीं, कल होंगे भी कि नहीं! आज होना इतना गहन है, इतना परिपूर्ण है, इतना तृप्तिदायी है, ऐसा गहन परितोष छा रहा है, कौन फिकर करता है! दुख में याद आती है बीते कल की, आने वाले कल की। बीते कल की, क्योंकि लगता है बहुत सुख थे कल, जो आज न रहे। आने वाले कल की, आशा बंधाते हो अपने को कि कोई फिकर नहीं, आज नहीं कल हो जाएगा। ये सब दुख के सोचने के ढंग हैं.
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हमारा चित्त अगर पूर्वाग्रह से भरा है तो महापुरुष तो दूर, एक छोटे से व्यक्ति को भी हम प्रेम करने में समर्थ नहीं हो पाते। एक पत्नी पति को प्रेम नहीं कर पाती, क्योंकि पति कैसा होना चाहिए, इसकी धारणा पक्की मजबूत है! एक पति पत्नी को प्रेम नहीं कर पाता, क्योंकि पत्नी कैसी होनी चाहिए, शास्त्रों से सब उसने सीख कर तैयार कर लिया है, वही अपेक्षा कर रहा है! वह इस व्यक्ति को जो सामने पत्नी या पति की तरह मौजूद है, देख ही नहीं रहा है। और ऐसा व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं है। यह बिलकुल नया व्यक्ति है।
स्रोत : महावीर मेरी दृष्टि में
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जीवन एक कला है। और जीवन उन्हीं का है जो उस कला को सीख लें। भगोड़ों के लिए नहीं है जीवन, और न नासमझों के लिए है। तुम कहीं भूल में मत पड़ जाना। तुम्हारे तथाकथित साधु-संन्यासी तुम्हें जो समझाते हैं, जल्दी मत मान लेना। क्योंकि वे कहते हैं कि हटाओ क्रोध को; वे कहते हैं, हटाओ काम को। मैं तुमसे कहता हूं, बदलो, हटाओ मत। रूपांतरित करो, ट्रांसफार्म करो। क्रोध ऊर्जा है, उसे काट दोगे तो करुणा पैदा न होगी। तुम सिर्फ शक्तिहीन, नपुंसक हो जाओगे। काम ऊर्जा है। उसे अगर काट दोगे तो तुम निर्वीर्य हो जाओगे। बदलो, रूपांतरित करो, उसमें महाधन छिपा है.
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यहाँ कोई भी अपना जीवन अपने स्वभाव में, अपने ढंग से नहीं जीता है।सभी दूसरों को खुश करने में अपना जीवन बरबाद कर रहे हैं। सभी अपनी सारी जीवन ऊर्जा को दूसरों को प्रभावित करने में नष्ट कर रहे हैं।कोई कभी भी किसी दूसरे को खुश नहीं कर सकता है। जब कोई स्वयं से ही खुश नहीं है तो, वह दूसरों को खुश कैसे कर सकता है, जबकि स्वयं को स्वयं के द्वारा ही खुश किया जा सकता है.
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सद्गुरु सत्य नहीं दे सकता, लेकिन उसके जीने की आभा, उसकी मौजूदगी का प्रसाद, उसकी उपस्थिति निश्चित ही, तुम्हारे भीतर जो सोया है, उसे सुगबुगा सकती है। तुम्हारे भीतर जो जागा नहीं सदियों से, शायद करवट ले ले। तुम्हारे भीतर जो मूर्च्छा है वह उसके जागरण की चोट से टूट सकती है। और तुम्हारा बुझा दीया उसके जले दीये के करीब आ जाए… और यही सत्संग का अर्थ है : जले दीये के करीब बुझे दीये का आ जाना। यही गुरु और शिष्य का संबंध और नाता है। यह प्रेम की पराकाष्ठा है—जले हुए दीये के करीब बुझे हुए दीये का आ जाना और एक घड़ी ऐसी है, एक स्थान ऐसा है, जहां जले दीये से ज्योति एक क्षण में बुझे दीये में प्रवेश कर जाती है। और इसका गणित बड़ा अनूठा है। बुझे दीये को सब कुछ मिल जाता है और जले दीये का कुछ भी खोता नहीं है।
राम नाम जान्यो नहीं-
Awareness is watching that the mind is full of greed, full of anger, full of hate or full of lust, but you are simply a watcher. Then you can see greed arising, becoming a great, dark cloud, then dispersing – and you remain untouched. How long can it remain? Your anger is momentary, your greed is momentary, your lust is momentary. Just watch a little and you will be surprised: it comes and it goes. And you are remaining there unaffected, cool, calm.
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Tears are a kind of language,a silent language. They don't come from your head, they come from your heart.It is the heart which is flooded and can not contain the experience any more and finds the language impotent and inadequate.Then, suddenly the heart remembers it has got a language, which does not speak, but still expresses. Tears of joy... are the language of the heart.
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मृत्यु जन्म के विपरीत नहीं है, जन्म की नैसर्गिक परिणति है। जो शुरू होगा वह अंत होगा। जो बनेगा वह मिटेगा। जिसका सृजन किया जाएगा उसका विध्वंस होगा। तुमने एक मकान बनाया, उसी दिन तुमने एक खंडहर बनाने की तैयारी शुरू कर दी। खंडहर बनेगा। तुम जब भवन बना रहे हो तब तुम एक खंडहर बना रहे हो। क्योंकि बनाने में ही गिरने की शुरुआत हो गई। तुमने एक बच्चे को जन्म दिया, तुमने एक मौत को जन्म दिया। तुम जन्म के साथ मौत को दुनिया में ले आए।
जिन सूत्र--(भाग--2) प्रवचन--31
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जिस दिन तुम्हारा प्रेम समस्त में व्याप्त हो जाता है, अचानक तुम पाते हो परमात्मा के सामने खड़े हो।प्रेम पकता है तब सुवास उठती है प्रार्थना की। जब प्रार्थना परिपूर्ण होती है तो परमात्मा द्वार पर आ जाता है। तुम उसे न खोज पाओगे। तुम सिर्फ प्रेम कर लो; वह खुद चला आता है l
ताओ उपनिषाद-