14 MAY 2018 AT 15:45

❝ मुझे न ❞
तुम्हारी इस धीमी सी सांसो से भी
अब डर लगता है / थोड़ा /
वो क्या है , कि उन हैवानों कि यादे भी
मेरे इस बेजान जिस्म पे
हर पल
बस यूं ही , रेंग सी जाती है
जो मुझे
मेरा / मेरे /ही साथ न होने का एहसास जताती है।

❝ पता है ❞
मुझे न तुम्हारी इन कुलबुलाती सांसो से
इसलिए अब डर लगता है / थोड़ा /
क्योंकि / तुम / उन रेंगती हुई यादों को
बड़ी आसानी से , मुझ पर ही पसीज जाते हो
मेरी जिस्म कि थोड़ी खिल्ली सी भी उड़ा कर
मुझे बस यूं ही , नापाक ठहराते हो।



- Nidhi