a.k verma   (A.K.Verma)
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Stay tuned for upcoming lines;)
I will give u goosebumps through my poetries..
Joined 19 June 2018


Stay tuned for upcoming lines;)
I will give u goosebumps through my poetries..
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3 JUN 2020 AT 23:07

ये कैसा तजुर्बा मिला तुझे,
एक मौका तो दिया होता मुझे।
एक जान नन्ही थी, दुनिया देखनी थी,
ये कैसी दुनिया दिखाई उसे,
बता कैसा तजुर्बा मिला तुझे।

मजबूरी थी तभी मांगी थी।
विश्वास बहुत था इंसानों में,
स्वाद थी बहोत मदद के हाथों में।
बताओ जरा,
वो आवाज़ सुकून तो दी न तुझे,
बता कैसा तजुर्बा मिला तुझे।

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19 MAY 2020 AT 0:24

सांझ ढले आसमां पर जो तुम आती हो,
बिल्कुल चांद नज़र आती हो ।।

कुछ यूं खिल जाती हो जैसे,
आसमां से कोई राब्ता हो रूहानी।।

तेरे चेहरे के बगीचे की ,
जैसे सूरज हो माली ।।

ये जुल्फे बिखेरना, फिर रोशनी से छेड़ना
इसकी तो फितरत है पुरानी।

जब छनकर मचलकर आती है ये मुझपर
जैसे कुछ किस्से हमारे गुनगुनाती हो।

सांझ ढले आसमां पर जो तुम आती हो,
बिल्कुल चांद नज़र आती हो ।।

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9 FEB 2020 AT 11:21

मेरी सहर जो रूठ कर शहर जा रही है,
लेके ख्वाबों का चारों पहर जा रही है,
बेशक हक है मुझे रोकने का उसे,
पर उसी वक्त इस्तीफा दिए जा रही है।

उसके बक्से में कहीं तो मैं ही हूं,
खींच कर मुझसे ही ले मुझे जा रही है,
शायद वह भी छूट गई हो कहीं,
जरूर उसे ही लेने जा रही है।

अब स्याह रात है सारी दुनिया,
मैं इसे और यह मुझे काटे जा रही है,
नींद तो दबी है कहीं तकिए के नीचे,
यह तकिए बहुत चुभे जा रही है।

मेरी सहर जो रूठ कर शहर जा रही है,
लेके ख्वाबों का चारों पहर जा रही है।।

-- A.K.Verma

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16 AUG 2019 AT 16:36

बंजर ज़मीन सा है ये ज़माना,
नस्ल धर्म से सना हुआ ।
ना मैं उसे, ना वो मुझे मानता है,
फिर क़ाफ़िर मैं हुआ या खुदा ?

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9 FEB 2019 AT 21:04

Today, It can rain inside me,
It might pain inside me.
It was a sicret
but truth revealed today.
You are not outside me,
The cloud of your memory
which make space inside me,
It can rain inside me.
It might pain inside me...

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2 FEB 2019 AT 11:43

एक पल में जाकर सोना है,
सबको आखिर में गवाऊंगा।

ये पंक्तियां होगी दौलत बस,
सिर्फ इन लफ्जों को मैं कमाऊंगा।

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29 JAN 2019 AT 23:04

वे ही जीवित दिख रहे है,
जो प्रतिपल कुछ सीख रहे है।

वे सब बाज बने उड़ रहे है ऊपर
की जो तुम मुर्दा हुए तो नोच खाए!

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23 JAN 2019 AT 0:59

वह पल जो छू कर निकल रहा है।
खबर ना थी कि वह तो कल था,
जो आज को निगल रहा है।

वह आज जो कल को संवारता,
अब व्यर्थ ही फिसल रहा है।

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14 JAN 2019 AT 12:31

पंछियों से पूछिए परवाज क्या होती है।
बहरे से पूछिए साज क्या होती है।
बेजुबान से पूछिए आवाज़ क्या होती है।
कवियों से पूछिए अल्फ़ाज़ क्या होती है।
बेरोजगरों से पूछिए काज क्या होती है।
वेश्याओं से पूछिए लिहाज क्या होती है।

"ये सभी आपको उस चीज की असल कीमत बताएंगे।"

"शुक्रिया"


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9 SEP 2018 AT 9:11

जो दिखता है वो हमेशा होता नहीं,

लोग मिट्टी के घरों में जमीन पर बैठ कर खाते है,
और
टाइल्स वाले फर्श पर लोग अक्सर फिसल जाते है।

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