शुरुआत हो दिन की प्यार भरी बातों से
पहचान जाए वो मुझे मेरी ही आहटों से
जब आए सामने दिल में धक-धक होगा
न शर्त न शक़ उस पर बस मेरा हक़ होगा
दिन के सारे बीतें किस्से रात में सुनाऊँगी
वो बस सुनता रहे और मैं कहती जाऊँगी
ना कोई नज़र ना ही कोई हसीन नज़ारे
एक मेरी ही ख़ूबसूरती के वो नज़र उतारें
शायरी में वो अपनी बस मेरी ज़िक्र करेगा
एक पल ओझल हो जाऊँ तो फिक्र करेगा
साथ रहकर जिसके ना कोई डर होगा
हाँ...कुछ ऐसा ही मेरा हमसफ़र होगा-
@thelostgirl💕
हर रोज़ सोचती हूँ कि अब न सोचू तुम्हें
मेरे बस में नहीं रिश्ता किसी से जोड़ दूँ
मेरे ये अल्फ़ाज़ हैं याद करने का जरिया
याद करूं तुम्हें या फिर लिखना छोड़ दूँ
मेरे खबर से अब तक बेखबर रहे हो तुम
बयां करुँ कुछ या फिर अब पन्ने मोड़ दूँ
ढूँढ लूँ मैं अब कोई बहाना खुश रहने का
दूसरी राह चुनु या फिर से ये दिल तोड़ दूँ
तकलीफ़ हुई जब देखा तुम्हें और के साथ
इसको सह जाऊं या फिर जीना छोड़ दूँ-
चाँद हो तुम चाँदनी अपना मुझे आज बना लो
ईद के बहाने सही एक बार मुझे गले लगा लो-
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कह नहीं सकते उस पर कितना मरते हैं हम
हाँ ये सच है इज़हार करने से डरते हैं हम
मंज़िल पाने का एक रास्ता इज़हार का है
पर एक अनजाना डर भी इनकार का है
अगर वो करेगा इक़रार तो इश्क़ हो जायेगा रंगीन
और करेगा इनकार तो दुनिया हो जाएगी गमगीन
कोई बताये कह दूँ उससे दिल की बात या ना कहूँ
खोल दूँ मैं सारे राज़ या इस कश्मक़श में ही रहूँ-
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हो जाता है कभी कभी दिल बहुत उदास
क्यूँ इस बारिश में भी बुझ न पाती प्यास
कभी सोचते हैं काश वो बन जाये हमारे खास
फिर क्यूँ ये काश बनकर रह जाता है बस काश
कभी हलचल होती थी सीने में जिसको देखकर
फिर क्यूँ वो हमें बनाकर चला जाता ज़िंदा लाश
कहते हैं किस्मत का लिखा खुद चलकर आता है
फिर क्यूँ करते रहते हैं हम किसी चीज़ की तलाश
हर चीज़ चाहने पर नहीं मिल जाता है यहाँ
फिर क्यूँ रह जाती है दिल में आखिरी आस-
खबर तो अब हमें सुबह और शाम की भी नहीं
ग़ैरों को अपनाया है पर अपनों को भूला नहीं
राह-ए-मंज़िल कब आसान हुआ करती हैं
बिन काँटों के तो कभी गुलाब भी खिला नहीं-
सच बताना,तुम भी दिन रात सोचते हो वही?
आरज़ू है उसकी जो पूरा ना हो पायेगा कभी
सुनो! पागलपन ही है उन्हें याद करना
रो रो कर रोज चार आँसू बरबाद करना
क्या कहा? तुमने वो कबीर सिंह देखा है
वो मूवी है पगले climax जो चाहो होता है
क्या मिलेगा तुम्हें उस पर दिल हार कर
अपने दिल को तू इस तरह न लाचार कर
ग़म में डूबकर इसके टुकड़े ना हज़ार कर
इतनी ही शिद्दत से कभी ख़ुद से प्यार कर
तुम्हें ना मिलेगा कभी तुम जैसा आशिक़
वफ़ा मिलेगा हो जाओ इस बात से वाकिफ-
मुश्क़िल नहीं होता था कभी मेरे लिए मनाना तुझे
अच्छा था तेरा बहाना बात बात पर रूठ जाने का
हँसी से मेरी हमेशा तुझे हसीन यादें वापस मिलती
अच्छा था तेरा अरमान मुझे दिल ही में रुलाने का
यादें मिटा कर कभी दूसरी बनानी ही ना थी तुझे
अच्छा था तेरा अंदाज़ हरबात पर बात भूलाने का
इस पागलपन में ना जाने क्या क्या किये हैं मैंने
अच्छा था तेरा तरीका मुझसे दिल बहलाने का
क्या कीमत ली मुझसे तूने खुद से दूर करने की
अच्छा था तेरा ढंग मुझे इस तरह ठुकराने का
खता मेरी ही थी जो समझ बैठी इसे प्यार
मैं तो बस जरिया थी तेरा दर्द मिटाने का-
वों हैं जैसे नज़राना कोई
कल्पना से परे वक़्त ने मिला दिया
पहले बढ़ाई पहचान उनसे
फिर दोस्त उन्हें मेरा बना दिया
बातें अक्सर छोटी ही थी
उनमें ही बहुत कुछ सिखा दिया
गुस्सा दिलाती कभी हरकतें उनकी
कभी वो ही दिल लुभा गया
नाराज़गी तो बेवक़्त रहती
कभी उदासी में मुस्कान दिला दिया
वज़ह और भी है परेशानियों की
पर बेवज़ह परेशान करना मुझे भा गया
ख़ुदा की रहमतों से मिले वो मुझे
अपनी परछायीं ही वो मुझे दे गया
लेकर वादा निभाते रहने की दोस्ती
एक क़र्ज़ जैसे और बढ़ा गया-