असमंजसों ले घेरे में हैं, सवालों से जूझते उत्तर की तलाश में थे, कि तभी एक गुलाबी चुनरी हँसते हुए वहां से निकली, पूछने पर उसने कहा रुके किस के लिए ज़िंदगी, हैं उलझने तो वही सही, पर जीने की इच्छा उससे प्रबल है तो फिर रुके क्यों उसकी आत्मा की नदी।
कि ज़िंदगी अकेले मुखौटों की भीड़ में कटेगी कैसे, फिर याद आता है साथ मेरे मेरा रब है, और किसी का हाथ सदा मेरे सिर पर है, फिर भयमुक्त होकर इस गगन में उड़ जाती हूं, क्षितिज को छू आसमान अपने नाम लिख आती हूं।
कुछ और सपने साथ बुनने की, मुरादें अधूरी ही रह गई साथ बैठ तारें गिन कॉफी की चुस्की लेने की, पर ये भी वादा तेरा याद रहेगा हमें सदा, मिलेंगे फिर हम दोबारा किसी सुंदर स्वप्न में हां।
कि बात ये राज़ की है, फिर यूं ही भीड़ में सरेआम तुम पकड़ के हाथ ये मेरा खींच लेते हो अपनी ओर न जाने बचाने को किनसे किस ओर, फिर मुझे चुप रहने को कह कर आप ही आँखों से कह जाते हो अधर को विराम दे बस अपना नाम साथ मेरे जोड़ जाते हो।
अब तो क्षितिज पर नाम लिखना है, वह विराट फलक है अब हमारा देख वहां मेरे नाम का सूर्य उदय होता है, चल अब साथ मेरे तू भी देख वहां एक हिस्सा तेरे नाम का भी मुझे दिखता है।