vikhyat singh   (पागल)
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Joined 25 November 2017


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15 OCT 2022 AT 20:09






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14 OCT 2022 AT 0:18

कैद में हम भी हैं
तुम भी हो

हम बता सके
कि हम हैं
तुम छिपा रहे
कि तुम नहीं

साहस
कि तुम छिपा सके
दुःसाहस
कि हम छिपाते नहीं

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6 OCT 2022 AT 11:18

अपने सभी भावों को व्यक्त कर देना - बचपन है

सभी को छुपा लेना - बुढ़ापा



इसलिये , "नौजवान" बने रहें 😎

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5 SEP 2022 AT 13:33

छटे बादल - धूप खिले
पंछी सब पेड़ो से आ मिले
आसमान अब खाली है
अनुपम छटा निराली है

एक-एक कर मारे गये
तम के सेनापति सारे
पीछे के दरवाजे से भागे
संशय , भय , शोक बेचारे

सूर्य उदित होगा ही एक दिन
मरे न थे उनके विश्वास
देख...कैसी रौशनी छायी है !
बड़े दिनों के बाद

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4 SEP 2022 AT 0:17

मंच से क्या ! मंत्रमुग्ध
करते नेता जी

विपक्ष के शासन-संकट
पर जब भी बकते नेता जी
न थमते - न थकते , नेता जी

भुखमरी के आँकड़े
गणितीय प्रमेयों पर
गरीबी को तराजू से
तौलते , नेता जी

हिन्दू-मुस्लिम , यादव-पण्डित
जब भी करते नेता जी
राम-मोहम्मद-साहिब जपते
गिरगिट-सहोदर सदृश्य उभरते नेता जी

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2 SEP 2022 AT 12:57

नैतिक होना अच्छी बात है
मगर शक्ति हो
ये और बात है

यदि हो शक्ति
नैतिकता के साथ-साथ
फिर , क्या बात है !...
क्या बात है !

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20 AUG 2022 AT 21:30

मैं नहीं जानता अँधेरा क्या है
बन्द आँखें या
खुली आँखों की बेमतलबी

मैं नहीं जानता अँधेरा कहाँ है
चिरागों तले या
चिरागों में ही कहीं

मैं नहीं जानता अँधेरा क्यों है
कारण रौशन जग या
उजालों का प्रयोजन कोई

मगर है अँधेरा ये है खबर
बेखबर अब हम भी नहीं

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6 AUG 2022 AT 22:13

कबीर का कुत्ता

सत्ता भोगी बैठे
दिल्ली के ताजोतख़्त पर

विपक्षी चीखते
हाय - हाय महंगाई
पन्नों को सोखकर

कबीर का कुत्ता
न सोये अब भी चैन से
करे है गाँव की पहरी
निकम्मों को सोचकर

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26 JUL 2022 AT 14:44

विचारों की चिल्लपों में "मिस्टर सत्य" छिपकर
'आडम्बर ' के भय से दहाड़ें मारकर रोये जा रहे थे।
तभी दरोगा "असत्य बाबू " धड़धड़ाते सत्य का कॉलर पकड़ मिथ्या के चौखट तक खींच लाये।
फिर , 2 गांधीवादी थप्पड़ जड़ते बोले...

" आजादी के 75 वर्ष होने को हैं
और तेरा रोना है कि रुकता ही नहीं ,
चल ले चलता हूँ तुझे आडम्बर के पास "

सूत्रों के हवाले से खबर है कि अब 'आडम्बर' और "मिस्टर सत्य" के बीच बहुत बारीक रेखा ही बची रह गयी है ।

( क्या आपने कहीं " मिस्टर सत्य " को देखा है ? )

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18 JUL 2022 AT 22:52

नारी ! तुम न केवल श्रद्धा हो

प्रेम ताल की नलिन मात्र क्यों
क्यों सागर की शक्ति नहीं
लज्जा की अमर छाप क्यों
क्यों चंचलता - प्रदीप्ति नहीं

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