Vijaylaxmi Pathak  
440 Followers · 72 Following

Joined 28 March 2018


Joined 28 March 2018
16 JUL 2021 AT 22:28

मैं सरल राह सा तुझको मिलता रहा ।
तुमने सोचा कि मैं तेरे काबिल नहीं ।।
भागता ही रहा है, तू यूं उम्र भर l
पर हुआ क्या, कुछ भी तो हासिल नहीं।।

-


5 JUL 2021 AT 20:39

मिले जो काम से फुर्सत, कभी खुद से भी मिल लेना
मिलेगा शाम खाली सा
सींचता यादों का बगिया फुहारा हाथ में लेकर
तुम्हारा मन ही माली सा

-


28 JUN 2021 AT 20:46

आपसी रिश्तों में विश्वास रहना चाहिए
जो भी हो, अपने लिए वो खास रहना चाहिए
परिस्थिति जैसी भी हो हर हाल में निभाए वो
हर वक्त में एक जैसा व्यवहार रहना चाहिए
रिश्ता प्यार का दोस्ती का या परिवार का हो
सभी में लचक भरमार रहना चाहिए।

-


25 JUN 2021 AT 21:30

सिक्के के हर पहलू में एक खनक जरुरी है
अपनों के अपनेपन की एक परख जरूरी है।

जब मखमल पर हो पांव और सर पर शीतल छाया हो
तब कौन खड़ा है साथ मेरे इसकी गिनती बस जाया है
जो धूप में छाता ले आए
जो मन को शीतल कर जाए
बोली में दिल छू लेने की
एक महक जरूरी है
अपनो के अपनेपन की एक परख जरूरी है।

-


24 JUN 2021 AT 20:10

कल के सपने देख रहे हो,
मौन धरा क्यों आज विकल है
आज से वंचित रह जाओगे ,
क्या है पता कि कैसा कल हो।

-


20 JUN 2021 AT 22:06

कुछ तेरी कुछ मेरी बातें
मिल बैठी तो बनी कहानी
कुछ तेरी कुछ मेरी यादें
ले आई आखों में पानी
मन तो सदा रहा चंचल सा
कभी यहां तो कभी वहां
फिर भी मन जब हुआ अकेला
दिल में थी बस तेरी निशानी।

-


18 JUN 2021 AT 8:07

कितना भी चलो सीधे रस्ते, एक मोड़ तो आता है जो मन को लुभाता है।

पन्ने दर पन्ने रोज लिखा, कभी दर्द लिखा कभी प्रेम लिखा
कभी लहर लहर सी हूक उठी, कभी नदिया जैसा प्रेम बहा
इस दर्द प्रेम के सागर में जब ह्रदय नहाता है ,आंसू बन जाता है।

-


14 JUN 2021 AT 18:08

क्या कभी खुद से भी है किया सामना
या निकाला है बस दूसरों में कमी
खुद से भी रूबरू होकर देखो जरा
आ ही जायेगी दिल में तुम्हारे नमी

-


5 JUN 2021 AT 10:58

बारिश की बूंदों में, घर मेरा नहाया है
जैसे मेरे लिए तेरा, संदेशा लाया है

काले काले बादल, जैसे आंखो के काजल
बिजली जो कड़कती है, जैसे मन में हुई हलचल
आंखो के कोरो ने,बूंदों को बहाया है
जैसे मेरे लिए तेरा संदेशा लाया है ।

-


1 JUN 2021 AT 21:30

आंचल के कोने में घर बार समेटा है
जाने कितने अपने जज्बात समेटा है

जिस बाग कि मै थी कली वो बाग छोड़ना था
घर बार मिले प्यारा बाबुल का सपना था
बाबुल के सपनों का संसार समेटा है
आंचल के

उगती हुई किरन सी मै हर शाम सी ढलती हूं
तूफ़ानी रातों में पत्तों सी बिखरती हूं
फिर सुबह परिंदो सी आकाश को देखा है
आंचल के

अपनों की खुशियों में खुद को भी भुलाती हूं
इस आंगन को अपना संसार बनाती हूं
आंखो के आंसू को पलकों में समेटा है

आंचल के कोनों में घर बार समेटा ह
जाने कितने अपने जज्बात समेटा है।

-


Fetching Vijaylaxmi Pathak Quotes