जिम्मेदारियों के बोझ तले दबते जा रहा हूँ,आज फिर मैं इंसान बनकर पछता रहा हूँ !चाहता हूँ फिर से मिलना इस नीले आकाश में,पर, चाहकर भी उड़ नही पा रहा हूँ।।@k - @k
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबते जा रहा हूँ,आज फिर मैं इंसान बनकर पछता रहा हूँ !चाहता हूँ फिर से मिलना इस नीले आकाश में,पर, चाहकर भी उड़ नही पा रहा हूँ।।@k
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