एक बार मैं नानी के घर थी गई,
तब थी मैं छोटी पर बुद्धू बड़ी।
अबतक मैंने हरी मिर्च का स्वाद था जाना,
लाल मिर्च को मैंने यहां आकर पहचाना।
रहती थी वहां मालिन एक मोटी,
ऊंची-सी नाक थी कद में थी छोटी।
देखा मैंने लालमिर्च से टोकरी थी उसकी भरी,
सोच रही थी मैं मन में ही मिर्ची तो होती है हरी।
कहा मैंने उस मालिन से तब मिर्ची तो होती है हरी,
फिर यह लाल हो गई कैसे किसने इसमें रंग भरी।
सुन मेरी बात फिर उसने खीस निपोरा,
लाल वाली होती मीठी तीखा होता है हरा।
मीठा सुनकर मेरे मुंह में आया पानी,
थोड़ी सी मीठी मिर्ची दे दो मालिन रानी।
सोचा था मैंने-
लड्डू-जलेबी होता लाल जैसे,
यह लाल मिर्च भी होगी वैसे।
बड़े प्यार से मैंने लाल मिर्च चबाया,
स्वाद चख मेरे आंखों में पानी भर आया।
रोने लगी मैं जोर-जोर पानी पानी कहकर,
दौड़ी दौड़ी आई मैं पानी पीने घर पर।
फिर मेरी नानी ने मुझको दी मिठाई,
तब लालमिर्च की कहानी मुझको समझ आई।
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