QUOTES ON #सफर

#सफर quotes

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10 APR 2022 AT 12:27

क्यों ना चल पड़े उस सफर पर,
जिसको था कभी सपनों में सोचा।
क्यों ना जी लें उस जिंदगी को,
जिसका अरमां था कभी मनमे बसाया।

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2 SEP 2018 AT 12:39

जाओ, खानाबदोशों से पूछो कि सफ़र क्या होता है।
पिंजरे में कूद लिखते हो कि उड़ना तुम्हें पसंद है॥

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6 JAN 2019 AT 20:25

रात के अंधेरों में,
अपने जुगनू ले कर चलें।

आसमान के तारों में,
अपने जुगनू ले कर चलें।

महफ़िल में ग़ैरों के,
अपने जुगनू ले कर चलें।

निकलें अनन्त यात्रा पे,
अपने जुगनू ले कर चलें।

बनने को मर्ज़ी का मालिक,
अपने जुगनू ले कर चलें।

निकलें जब भी घर से,
अपने जुगनू ले कर चलें।
-राकेश"साफिर"✍️

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4 NOV 2018 AT 12:37

होती है जब कुछ आहट सी,
तो लगता है के साथ हैं कोई !

मिलती हैं जब तन्हाई तो होता
है यकीन,
के शायद ये सपना था कोई !

होता इंतज़ार हमारे भी नज़रों में,
चलता अगर साथ कोई सहर तक...!

होती चाहत हमे भी मुस्कुराने की,
वजह बनता कोई आंखरी पहर तक !

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19 OCT 2020 AT 14:23

खुदको खाली कर तेरी तन्हाई भरनी है
इस तरह कलम सा इश्क़ करना है मुझे

तुम घाव से क्यों डरते हो हमदम
खंजरों के शहर में मरहम सा बिकना है मुझे

ऐसे आधा तोड़ के मुझे घबरा मत
तेरे इश्क़ में अभी राख बनना है मुझे

सिर्फ अश्क बहाना इस दर्द की हद नहीं
सैकड़ों रातों का पहरेदार बनना है मुझे

मुनासिब है तुम नजरें चुरा के भाग जाओ
वरना मेरी वफाओं का और कर्जदार बनना है तुझे

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14 OCT 2018 AT 0:49

रिश्तों में एक नई गिरह लगा गए हो तुम
रौशनी के लिए हमको ही जला गए हो तुम

तमन्नाओं का कोई अंत नहीं इस जहाँ में
फिर भी नई कुछ तमन्नाएं जगा गए हो तुम

माना कि तुमको नहीं है मोहब्बत की आरज़ू
सूखी रेत को फिर क्यूँ नदी बना गए हो तुम

जब रहबर ही न रहा इस सफर में अब कोई
क्यों वीरान दिल में रास्ते बना गए हो तुम

ज़ाहिर है अब आशिकी की कीमत नही यहाँ
दर्दे दिल की कुछ कौड़ियाँ थमा गए हो तुम

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31 MAY 2021 AT 7:37

सफर- ए- जिंदगी मे
तकदीर -ए- हक हम भूल चुके... ....
कोई खास लम्हा याद ना रहा
कोई खास तस्वीर याद ना रही
याद तो आज भी हर पल आती है.....|2|
पर कोई खास लम्हा अब याद करु
ऐसा मेरा वक्त नहीं, ऐसी मेरी तकदीर नहीं...


कौन कहता है हम भूल चुके तुम्हे |2|
हमे तो आज भी इश्क़ है बेवाफ़हाई से तुम्हारी
यकीं ना हो तो आजमा के देख लो
ये दिल आज भी तेहनात खडा वकालत मे तुम्हारी....

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26 MAR 2018 AT 18:06

ना जाने ...मंज़िल कहाँ होगी ?
जिसे ढूंढता हूँ दर-ब-दर ..🚶
ना जाने दिल...वो कहाँ होगी?

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11 JUL 2020 AT 9:08

पैमाइश के पैमाने 'गम'
दिल ढूढ़ रहा...
कुछ ज्यादा 'कम'
तुम भी तो 'अधूरे'
हम भी है...
कब पूरे होते
है....हम-दम
कुछ 'कम' का असर
है रहता ही...
पैमानों में जो 'उलझे' हम
हसरत की वही 'निग़ाह' तलब
हर्जाने में सब 'सिलते' लब

पूरा होकर भी 'अधूरा' है
ये 'सफर' जो तेरा-मेरा है

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शुभ संध्या

ढ़ल रही है शाम अब
निशा पग फैला रही।

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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