उसे देख कर एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी।
कितनी देर से वो बस बर्फ के गोले वाले के पास बैठ सबको देख रही थी,आते-जाते, गोला खाते।
कोई संतरा मांग रहा था,कोई कोला,कोई काला खट्टा तो कोई गुलाब का गोला।
किसी ने उसकी तरफ एक बार नही देखा।उसने भी किसी से कोई गुहार नही लगाई,पर उसकी ललचाई आंखे सब कह रही थीं।
वो डर भी रही थी उस गोले वाली से।गोले वाली ने दो बार ठंडा पानी डाल दिया था उसपर।पर गर्मी में ठंडक शायद उसे अच्छी लग रही थी इसलिए हिली भी नही वंहा से।मैं गोले वाली के पास पहुँची, एक काला खट्टा नींबू मसाला तेज़।
काकी तुम्हें क्या पसंद है?
गुलाब,गुलाबी वाला।
और एक गुलाबी।
दीदी आप जैसे लोग ही इन लोगों की हिम्मत बढ़ा देते हैं और ये लोग यंहा बैठ हर ग्राहक को परेशान करते है।
सुनिए,मैं पिछले एक घंटे से यंही आसपास हूँ, काकी ने किसी से एक बार भी नही कहा कुछ।
ये लीजिये गुलाब वाला।
लो काकी।
मैं ले जाउँ?
हाँ काकी,यंही खा लो।
नही बिटिया है वो,फूल बेच रही।प्यासी है बहुत पी लेगी ठंडा गला तिरप्त हो जाएगा।
खुश रहो बिटिया,जियत रहो।
लंगड़ा कर चली गई,सड़क पार छोटी बच्ची को गोला खिलाने।जो मैंने अभी देखा इस से बड़ा सच्चा सुख हो सकता है क्या??
मैं जब भी निकलती हूँ गर्मियों में ठंडी पानी की बोतल जरूर रखती हूं,उन बच्चों के लिए जो धूप में हमारी ए सी कारों के पीछे भागते हैं।ना भीख मांगने नहीं, पैसे कमाने।
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