गहरे कोहरे में लिपटी जमी ,
ओस की बूंदे खिड़की से लिपटी पड़ी ।
आसमान और धरती एक ही रंग में चमक रहे
दस्तक दे रही है खुशी,तू क्यों गुम खरी ?
पत्तों पे बूंदे हीरे बन चमक रहे ,
घास भी ताज डाले तनी खरी ,
फिर मुस्कुराए कली ,
चल हम भी खिल खिलाए यूं ही कभी ।।
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