मेरी इज्जत क्यों नीलाम हो गई
जब मैंने कुछ किया नही,
मैं बदनाम क्यों हो गई
जब मैंने कुछ किया नही।
मैं भूल जाना चाहती हूँ उस घटना को,
जिसमें मेरा दोष न था
लेकिन फिर भी लोग मुझे ही दोषी मानकर,
याद दिला ही देते है।
मैं जहाँ भी जाती हूँ, कलंक की तरह ये मेरे साथ चलता है
मेरे को तो अपमानित करता हैं,
साथ मे मेरे परिवार को भी बदनाम करता हैं।
मैं निर्दोष होकर भी,इस बदनामी को दोषियों की तरह झेलती हूँ
गुनाहगार आज भी निर्दोषों की तरह बेपरवाह घूमता है।
मैं पूछना चाहती हूँ सबसे कि,
मेरी इज्जत क्यों नीलाम हो गई
जब मैंने कुछ किया नही,
मैं बदनाम क्यों हो गई
जब मैंने कुछ किया नहीं।
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