हृदयांगन पल्लवित कोमलांगी कलिका सी तुम,
स्नेहसिक्त अहसासों से परिपूर्ण अनविका सी तुम।
कभी साहस की प्रतिमूर्ति बन सूर्य-आभा सी दीप्त हो,
तो कभी पत्तों पर पड़ी नन्ही-नन्ही मिहिका सी तुम ।
निश्छल मन से महकाती हो घर के आंगन को ,
उम्मीद के आसमां की चमकती हुई निहारिका सी तुम।
टूटती हुई आशा को हौंसले का दामन थमाती हो,
निराशा के कुहासे में प्रज्वलित वर्तिका सी तुम।
दुनिया जहान के लिए चाहे तुम आम सही ,
पर मेरे लिए कोई सलोना स्वप्न अद्विका सी तुम।
.......... निशि..🍁🍁
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