QUOTES ON #बारिशकीबूंदे

#बारिशकीबूंदे quotes

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1 AUG 2020 AT 8:24

इस वक़्त में तुम्हारी
कमी पहले सी है
मेरे आँखों में ये नमीं
आज भी कुछ वैसी है
फर्क सिर्फ इतना है कि
इन होठों पर ये मुस्कान
उन बीते वक़्त की ख़ुशी
की है हा अब मुलाकातें
तो नहीं होती हमारी पर
आज भी इन बूंदों में तुम्हारी
छवि कुछ वैसी ही है‍‍‍‍‍‍‌‌‍...

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6 MAY 2020 AT 20:45

ये कैसा इत्तेफाक था
दिल धड़क रहा था मन बेताब था
बारिश की बूंदों में जब तेरा साथ था
न जाने किसी की साजिश थी
या फिर खूबसूरत कोई इत्तेफाक था

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20 MAY 2021 AT 8:14

Aaj to kuch Jada hi Teri
khvahish ho rhi hai ,
Tabhi to may ke mahine
me barish ho rhi hai !!
🌧️🌨️🌫️🌨️🌧️

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21 JUN 2020 AT 23:01

हर दफ़ा बारिश उसका पैग़ाम लेकर आती है और
मेरे बंजर से दिल को हरा भरा कर जाती है

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10 JUN 2020 AT 17:35

बरसात भी अब साहूकार सी हो गई है साहब,,,,
जब देखो तब आंसूओं से ब्याज लेने आ जाती है....!!!!!

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30 JUN 2020 AT 9:52

ये बारिश...

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6 JUL 2020 AT 20:03

तेरे शब्दों की बारिश में मैं रोज़ भीगती हूं
सच है पिया तेरे शब्दों में खुद को ढूंढती हूं
एक अविचल नदी सी शांत हूं मैं खुद में
पर तेरे शब्दों में मैं रोज़ डूबती चढ़ती हूं
यूं तो शांत हवा सी मदमस्त शीतल मैं
पर तुझमें खोकर रोज़ आंधी बनती हूं
तूने मुझे जो अपना लिया है सजना
इतना प्यार दिया कि क्या है कहना
तेरी आंखों के आइने में रोज़ संवरती हूं
मेरी आंखों के काजल से लड़ती हूं
कहीं पिया को आंखों से बहा न दे
इसलिए अब बिन कजरे ही रहती हूं
मेरी कहानी का तू खास किरदार हो गया
जाने कब कैसे कहां तुझसे प्यार हो गया
अपने सपनों की दहलीज पर तुझसे रोज़ मिलती हूं
हकीकत के दायरों में बंधी थोड़ी थोड़ी रोज़ ही खिलती हूं
मेरे नखरों को तू भी अब उठाने लगा है
मेरे संग जाग के रात बिताने लगा है

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20 JUN 2019 AT 13:02

ओ बहरे आसमान सुन ले मेरी गुजारिश़
उंगली ऊपर करूँ तो करना थोड़ी बारिश़

तू ही तो अकेला सारी ज़मीं का रखवाला है
इसीलिए कर रहा हूँ तुझसे थोड़ी सिफारिश़

बरसा दे दो बूँद पानी के मेरी फ़सल के लिए
कर दूँ तभी मैं सारे ज़माने की पूरी ख़्वाहिश़

अगर पानी ना मिला तो सूख जायेंगे मेरे खेत
और मर जाऊँगा मैं, है नहीं मेरा कोई व़ारिस

मैं परिंदा नहीं जो तू मेरे परों में समा जाएगा
उड़ नहीं पाऊँगा मैं, हैं मेरी भी कुछ बंदिश़

बिना पानी "कोरा कागज़" हूँ मैं और मेरे खेत
लिख दे ज़रा दो बूँदों से हमारी यही फ़रमाइश

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9 JUL 2021 AT 17:18

तृप्त करती फुहारे ,
प्रियतम की याद में ....
सिसकती चाह में ,
गहराई में उतरती ये बूंदे ....

मन की उवरा पर !
रेश्म के तार से बंधती ,
प्यार के रंग में .. खुद को रंगती ,

मीठा-सा शोर करती ,
ठिठुरते होठों पर ....
भाव को सजाती !

निश्छल मन के करीब !
सांसो के समीप ....
खुद को समर्पित करती ...

मन के धरातल पर करवट लेती
उंमगो को अमृत देती .....

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कण कण मैं बसे हैं शिव जी तभी तो बूंदे गाती हैं
जमीं पर गिरकर कुछ बूंदें फिर बुंदों से नहाती है

छोड़ आसमां का दामन वो ज़मीदोश हो जाती हैं
ना जाने किस कारण से वो फरामोश कहलाती हैं

कहीं मूसलाधार तो कहीं झरना सा बन जाती हैं
जुड़ कर टूटे टूटे जुड़ कर इसी तरह मर जाती हैं

कुछ पल रुक कर फिर जी भर कर बतियाती हैं
शायद जमीं से अपने विरह की व्यथा सुनाती हैं

छत पर और खेतो में नाची नदियों में मिल जाती हैं
और फिर सागर से उठकर अम्बर में मिल जाती है

जमीं से मिलने की खातिर अपनो से लड़ जाती है
कपिल ना जाने धरती से वो कैसा इश्क निभाती हैं

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