बरसात तो बेशुमार हुई मगर सावन नहीं आया,
अबके बरस भी लौट के मेरा साजन नहीं आया!
मेरी आँखों में छुपा है तेरा ही होने का उजियारा,
दिल में रहा सदा चाँद, पर मेरे आँगन नहीं आया!
बारिश की थी रिमझिम पर बदन में आग कायम,
जिस्म से तू था हाजिर पर मुझे सुकूँ नहीं आया!
बारिश की उम्मीद में, मैं चातक सरीखी बन गई,
पर स्वाति नक्षत्र में भी तू, बूंद बनकर नही आया!
तुमसे जो मोहब्बत की तो मैं दुनिया भी छोड़ दी,
फिर भी तू कभी, मेरा थामने दामन नहीं आया!
मेरी मौत भी बेबस है अब, आ के तेरे दर पर भी,
फिर भी जान कह रही है, मेरा जानम नहीं आया!
विरह के जख्म अब तो नासूर में तब्दील होने लगे,
एक बार भी "राज" तू मरहम बन कर नही आया! _राज सोनी
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