QUOTES ON #नाकाम

#नाकाम quotes

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6 OCT 2021 AT 13:01

मिस्मार हो गया दिल बदनाम होते-होते
मर ही गई वफ़ा भी नाकाम होते-होते

रिश्वत की आशिक़ी है बाज़ार है दग़ा का
रिश्ते भी मिट गए अब बे-नाम होते-होते

कुछ और है दिलों में कुछ और ही है चेहरा
सब दफ़्न कर दिया है गुमनाम होते-होते

कुछ जिस्म जी रहे हैं कुछ जिस्म मर रहे हैं
नंगे हुए हैं कुछ गुल गुलफ़ाम होते-होते

लाचार है तू 'आरिफ़' कोई नहीं है तेरा
दुश्मन हुआ ज़माना आवाम होते-होते

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25 OCT 2019 AT 10:02

मेरी कमियों में छिपा है मेरा इंसानी वजूद,
गर हो तमन्ना-ए-मासूम,
जा फिर कोई फरिश्ता ढूंढ ले।

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28 OCT 2017 AT 23:56

जो नाकाम है अब तक खुद को ये समझाने में
वो मुझे कैसे समझायेंगे के मोहब्बत नहीं मुझसे

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13 JUL 2019 AT 7:21

जब भी सोचती हूँ
तुम्हे खुद के पास
तो धरती और आसमान की दूरी
लगती है सिर्फ आभास

छूना चाहती हैं तुम्हे
मेरी कल्पनाएं
और बनाती है तुम्हारा प्रतिबिम्ब
अपने ही ख्यालों में

फिर एक दम से टूट जाते हैं सपनें मेरे
शीशे की तरह
बिखर जाते है ख़्वाब
और बचती है सिर्फ याद
देखती हूँ फिर आसमान में
और पाती हूँ खुद को नाकाम
तुम्हारी दुनिया में

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2 FEB 2020 AT 20:59

आपकी उम्मीदों को नाकाम नहीं जाने दूँगा
ये मत सोचना मैं भूखा हूँ तो किसी को खाने नहीं दूँगा

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9 NOV 2019 AT 20:59

सब छोड़कर करूँ तुमसे मुहब्बत भरी बातें
मेरी जान मैं अब इतना भी नाकाम तो नही
कुछ जिम्मेदारियां भी हैं घर की ऐ सनम
सिर्फ इश्क़-मुहब्बत ही मेरा काम तो नही

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11 FEB 2017 AT 19:10

उसकी हर चाल आखिर तब नाकाम हुई,
उसकी हर चाल से वो जब वाकिफ़ हुई।

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सच को जब सब की नज़र में ले के आया आईना
पत्थरों के शहर में फिर रह न पाया आईना

जब मिरे ज़ाती मुख़ालिफ़ के कुदेरा राज़ को 1
उस घड़ी तो मेरे् दिल को ख़ूब भाया आईना 2

जब मिरा नंबर लिया तो काला दिल आया नज़र 3
मैंने उस लम्ह़े में ग़ुस्से से गिराया आईना 4

कुछ ने पैसे कुछ ने पॉवर के तले दफना दिया
सच न कहदे इस लिए सबने छुपाया आईना

टूट कर भी उसकी फ़ितरत उसपे ग़ालिब ही रही
रेज़ा - रेज़ा हो गया पर मुस्कुराया आईना

साफ़ दिखने लग गए मद्धम थे जो रंग ए 'ह़यात'
वक़्त की गर्दिश ने मुझको जब दिखया आईना

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पहले इलज़ाम मुझ पर लगाए गए
और फिर मुझ प खंजर उठाए गए

पीड़ से रूह़ तक कूकने लग गई
इस क़दर हम यहाँ आज़माए गए

सिर्फ़ वो-वो ही हमको न ह़ासिल हुआ
ख़्वाब जिस-जिस के हमको दिखाए गए

वो सभी छोड़ कर मुझको चलते बने
नाज़-नखरे न जिनके उठाए गए

सिर्फ़ मातम ही मातम किया ज़ीस्त ने
गीत-ए-उल्फ़त कहां गुनगुनाए गए

अपनी दुनिया बहारों से कुछ कम न थी
हम गुलिस्तां से वीराँ में लाए गए

रेगज़ारों में गुज़री मुकम्मल 'ह़यात'
रास्ते सब गलत ही दिखाए गए

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8 OCT 2020 AT 16:19

कब, कहाँ हुई, कोशिशे नाकाम, याद नही,
कहाँ हुई थी मिरी जीस्त ए शाम, याद नहीं.

दर्द ओ गम के सिवा इश्क़ मे,
जहाँ से, और क्या मिले थे दाम, याद नहीं.

जागते हुए शब ओ सहर है काटी,
जिंदगी को, कब मिला, आराम, याद नहीं.

मेरा भी तो इश्क़ रहा है बेहिसाब,
पिये, निगाहों से, कितने, जाम, याद नहीं.

तुम्हें पूजा, तुम्हें चाहा, तुम्हें जाना,
मुझे तो, किसी और का, नाम, याद नहीं.

मेरे गली चौबारे और तेरे शहर मे,
उफ्फ् कहाँ कहाँ हुए बदनाम, याद नहीं.

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