काश देखूँ
तेरे लबों की पंखुड़ियों से निकलती श्वेत सांसें,
ओस की बूंदों सी तू नहाके इन सर्दियों में कहीं मिले मुझे,
देखो.., यह बर्फ़ हर साल ,पहाड़ों से मिलने आती है
चार छै महीने रहेगी साथ, रिसेगी, धीरे-धीरे पिघलेगी,
रिबाज़ तू भी यह मौसम का निभाएगी क्या..,
बस ईक पहर ही आके ठहर जाना.., जानां
मेरी किसी तन्हा दोपहर की गुनगुनी सी धूप बनकर,
मैं तेरी यादों को सुखाकर फिऱ से ओढ़ लूंगा
बाकी ऋतुएं आयेंगी जायेंगी, तेरा इंतजार तो यूँ ही रहेगा;
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