मेरी शायरी का उनपे थोड़ा तो असर होगा
...बेज़ुबा इश्क़ का भी कोई तो बहर होगा।
हर्फ़-दर-हर्फ़ चुरा लेते हैं, मेरी यादों के मयख़ाने से
...मेरी ख़िलाफ़त में डूबा, उनका ही शहर होगा।
आँखे भीनी हो गई आज जो मर्म सीते-सीते
...तमाम उलझनों का कोई तो पहर होगा ।
कभी सिर ही नहीं रखा जो शाने पे मेरे
बेशक इसमें हालातों का ही कहर होगा ।
कांच की डोली में जो विदा किया है मुझको
भूल गये वो पत्थरो से ही बना मेरा घर होगा।
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