QUOTES ON #खंडर

#खंडर quotes

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29 MAY 2020 AT 20:42

खंडहर को महज़ खंडर ही रहने दो
उसे तुम तख़्त-ओ-ताज ना बनाओ,

मूरत-ए-हुस्न को बेवफ़ा ही कहने दो
उसे तुम बेगानी मुमताज़ ना बताओ।

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30 JAN 2019 AT 0:30

ये शहर .. शायद !! उम्मीद तुमसे ज़रा ज्यादा लगा बैठा

वरना .. यूँ ही .. !!

ये खड़ी इमारतें .. खंडर होने तक तुम्हारी राह न देखती

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30 APR 2018 AT 19:24

मेरे दिल की जमीन खंडर बनती जा रही है,
है कोई सींचने वाला ?
@k

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18 APR 2020 AT 1:52

ग़र कभी सुनना हो
मौन का संवाद ..
मेरे दर चले आना
..
मेरा आसमां दुख के छाले
अपने सीने पर जब सह नहीं पाता
बरस जाता है
मेरी ज़मीं झेलती है जब
रुदन पहाड़ों का
अपने पेड़ों से गिरा देती है पत्ते
मेरी दीवारों पर उग आती है
तन्हाइयों भरी सीलन की काई
बिस्तर पे रेत फैली होती है
रेगिस्तान की .. जिस पर आंसुओ ने
बो दिए है काँटें नागफनी के
हवा सांय सांय का नाद करती है
खंडर बने खोखले जिस्म में
..
मेरे दर चले आना .. कि
हर लहर संवाद है .. समन्दर की ख़ामोशी में

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16 MAR 2019 AT 22:08

तुम्हारा साया .. मिल जाता ..
तो घर .. पूरा हो जाता .. मेरा
अब हर शख़्स .. ताक झाक में है ..
कब .. दीवारें .. गिरेंगी मेरी

और

मैं ठहर गई हूँ .. तुम में .. कुछ इस तरह
मंज़ूर है मुझे .. तुम बिन .. खण्डर हो जाना

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1 MAY 2018 AT 14:27

सुनो कुछ कहती है ये धड़कने,
बस तुम मेरे दिल में ठहर जाओ ना....!

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27 FEB 2018 AT 16:49

मेरी तन्हाई को खंडर मत कहो यारो ,
किसी की याद में बँधा महल है ये ।

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3 OCT 2018 AT 14:10

मचेगा जब यहाँ घोर कहर
डूब जाएगा तब सारा शहर
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मिल जाएगा जब तुझमें ये वजूद मेरा
सांस लेगा तब ज़र्रा ज़र्रा पा संग तेरा

💦 खंडर और समन्दर का मिलन 💦
💦अनुशीर्षक में 💦

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30 APR 2018 AT 20:58

क़यामत के दीवाने कहते हैं हमसे ,
चलो उनके चहरे से पर्दा हटा दें सज़ा दें ...
दिलों के फूल खिल गये,
तो फ़िक्र क्या बहार की.....

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8 JAN 2023 AT 19:07

बिन परों के, घोंसलों से तुम नहीं निकलो कभी
आधी रातों को घरों से तुम नहीं निकलो कभी
कब कहाँ इंसानियत कुचली घसीटी जाए फिर
इसलिए वीरानियों से तुम नहीं निकलो कभी

हर किसी की तय हैं जिसमें उसको रहना चाहिए
ख़्वाह-मख़ाह अपनी हदों से तुम नहीं निकलो कभी

भूले बिसरे ख़्वाबों के आसेब रहते हैं वहाँ
यादों के उन खंडरों से तुम नहीं निकलो कभी
लौटना हो जाएगा मुश्किल बड़ा सच कहता हूँ
ख़वाहिशों के जंगलों से तुम नहीं निकलो कभी

धीरे धीरे बढ़ते हैं फिर तय कभी होते नहीं
अपनों से यूँ फ़ासलों से तुम नहीं निकलो कभी

रिंद हो जो तुम 'असर' तो एक ये वादा करो
होश में फिर मय-कदों से तुम नहीं निकलो कभी

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