छाँव को तरसे रहे किसी दरख़्त का सहारा ना मिला !
शहर तो अपना था पर कोई शनासा हमारा ना मिला !
दरिया ए मौज सर से पाँव तक कब छु के गुजर गई,
खुद में इस कदर उलझे रहे कि किनारा ना मिला !
हर शय को करीब से जब देखा है उसके बाद,
जो आंखों में घुल सके कोई ऐसा नजारा ना मिला !
किसी रहबर की तलाश में मुंतज़िर रहे हैं बरसो,
जो राहगुज़र दिखला सके कोई सितारा ना मिला !
नाशाद है किस बात पर अब खुदा ये 'कवित'
उभारने का इस ओर से कोई इशारा ना मिला !
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