जब जब आम का मौसम आता है,
बचपने को याद दिला जाता है।
बचपन में रहते थे हम कैसे,
ये किस्सा आम का मौसम हमे बता जाता है।
किस्से पुराने है लेकिन रोचक बहुत है,
बचपने के आम मीठे बहुत होते हैं,
कभी आँधी कभी बवंडर मंडराया करते थे,
हम उसी आँधी और बवंडर मे जाया करते थे,
बरसात हो या धूप हो सुबह हो या शाम ,
आंधी हो या बवंडर क्यों न आ जाये तूफान,
हम दोस्तों के साथ जाया करते थे आम के पास।
आम किसी ना किसी बगीचे मे गिरे होगे,
इसलिए दो चार बगीचों के चक्कर हम लगाया करते थे,
आम मिले तो ठीक है नही तो हम आम को तोड़ लेते थे,
अगर बगीचे वाला आ जाये तो हम आम लेकर भागते थे।
फिर दूसरे दिन हम फिर से आम के बगीचे मे पहुंच जाते थे,
दोस्त भी कितने अच्छे थे हम अगर न जाये तो वो घर पर आ जाते थे,
आम लेकर ही वो हमें घर आने देते थे।
जब आम तोड़ नही पाते तो भगवान से प्रार्थना करते थे,
फिर आम अपने आप ही टपक जाते थे हम सब खुश हो जाते थे,
आम तोडने के चक्कर मे कई बार पेड़ से गिरे,
कभी पोखरा तो कभी सडक पर गिरे मिले थे हम।
भगवान का शुक्र है कि कुछ हुआ नहीं,
नही तो आम के साथ साथ हम भी टपक गये होते।
कोई बगीचा बचा नही हमसे जिस बगीचे का आम खाया न हो,
दोस्तों के साथ खूब नाचना और मस्ती करना ,
पूरा दिन दोस्तों के साथ रहना और कोई काम नही।
ये किस्से आम के है नाम बचपने के है।
आज उन दिनों को बस याद करता हूँ, (भाग1)
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