मैं हर पल हर घडी बस तुम्हें ही ढूंढती रही,
कभी भीड़ में तो कभी तन्हाई में खोजती रही।
ना मिला पता कभी भी तुम्हारा कहीं,
सब ढूंढलिया मैंने सातों आसमां और ज़मीं।
मायुस होकर जब मैं लौट आई,
तुम्हें मेरे दिल में ही मैं महफूज़ पाई।
करती हूं जो तुमसे मोहब्बत बेपनाह,
अब मानलो तुम ही हो मेरे हमनवा।
आज भी सिर्फ मेरे दिल में तुम ही हो,
इस दहर से दूर मेरे अंदर तुम ही हो...।।।
-