एक शाम मेरी तन्हा सी है कुछ खफ़ा खफ़ा रुस्वा सी है यूँ रूठ कर बैठी है मुझसे लगती कोई बेवफा सी है तेरी यादों की जब हवा चले ये शाम भी मुझसे गिला करे क्यूँ खुद को तू यूँ जला रही जिसके लिए तू अजनबी सी है तेरे इश्क़ में यूँ जल गई जैसे लौ दिए कि पिघल रही किसी सहर तो मुझसे आके मिल इस दिल ने ये इल्तिज़ा की है *एक शाम मेरी तन्हा सी है लगती कोई बेवफा सी है*
रुक जाती हूं खुद की ख्वाहिशें है बताना, इस उम्मीद से कि तुम समझ जाओगे एक दिन, मुझे कोई जल्दी नहीं, अभी तो पूरा जीवन रहना है हमें एक साथ, एक समय के बाद, "तुम समझ जाना या फिर मैं समझ जाऊंगी" 💙♥️