सुनो यारो, ख़ताओं को मिरी पहचान रहने दो!
फ़रिश्ते तुम बनो, मुझको फ़क़त इंसान रहने दो!
ये उम्मीदें हमारी हमको अक्सर दुख हि देती हैं!
भुलाना सीख लो, रिश्तों में अपनी जान रहने दो
कभी जो ज़िंदगी के फ़ैसलों में मुश्किलें आएँ
तो हर लमहे नसीहत के लिए कूरआन रहने दो
ख़ुदी अब भी सलामत है, इरादे अब भी पुख़्ता हैं
मैं लड़ सकता हूँ तनहा, आप ये अहसान रहने दो
ये दुनिया चार दिन की है, यहाँ किस बात से डरना
भले सब कुछ लूटा दो, क़ल्ब में ईमान रहने दो!
किताबों से न सीखो गे, ग़रीबी जो सिखाएगी
ग़रीबों से भी अपनी थोड़ी सी पहचान रहने दो
वही यादें, वही बातें, वही ‘शमशेर’ की ग़ज़लें...
ये दिल ऐसे ही अच्छा है इसे वीरान रहने दो!!
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