वक्त-बेवक्त , कैसी ख़ुमारी छाई ।
मेरे रूह में , तेरी आहट सी आयी ।
यूं तो , लोगों ने मजमा सजाया ।
तेरी तारूफ़ सुनने , जहां आया ।
ज़िक्र में लब्ज़ से , उफ़ न निकले ।
बयां करने चले तो , बस शर्मा गए।
ख़ुदा बक्शे मुझे ज़रा हिम्मत ,
कुबूल करू तेरी मोहबब्त ।
नसीब हो मुझे जहां-ए-जन्नत !
वक्त बेवक्त , कैसी ख़ुमारी छाई ।
मेरे रूह में , तेरी आहट सी आयी ।
यूं तो , लोगों ने मजमा सजाया ।
तेरी तारूफ़ सुनने , जहां आया ।
ज़िक्र में लब्ज़ से , उफ़ न निकले ।
बयां करने चले तो , बस शर्मा गए ।
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