शोर करती आँधियों में शांत है जो,
पर्वतों की चोटियों पर वो खड़ा है,
झरनों के गिरते हुए पानी में भी है,
और समुंदर की अनंत गहराइयों में,
हद यही है कि वो हद से भी है आगे,
इस धरा की सोंधी खुशबू में बसा है,
तोड़कर लाते हो गुल तुम जिस चमन से,
उस चमन के फूल में वो ही सज़ा है ||
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