मध्य,तर्जनी और अनामिका,
कटि प्रदेश को छू जाएं
सिहरन तन में पैदा कर दे,
काम की अग्नि जल जाए
तन हो आतुर,मन हो व्याकुल
प्रिय से ही अब चैन मिले
प्रेम मद्य से तन हो झंपित
मृदु कराह परिवेश घुले
प्रिय आस है, गर्म सांस है
अधर तो जैसे सूख गए
जिह्वा आकर रस है फेरे
प्रिय रस बिन है, शुष्क हुए
नैन निहारे सजनी के यूं
प्रिय प्रेम की आस है
अंग अंग में प्रेम को भर दे
ये यौवन की प्यास है
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