मेरे दोस्तों मेरे पढ़ने वालों अदीबों आदाब ا
ग़ज़लें रोती हैं मेरी, अपनी कमतरी
और ख़ामियों के सबब ا
हालांकि मैं खुद बख़ूबी जानता हूँ,
कुछ बारीकियाँ इस इल्म की मख़फ़ी
यानी ग़ैर हाज़िर हैं अभी मेरी कलमकारी में ا
शेर का हक़ अदा कर पाना और उसमे
रूह को उतारना अभी नहीं आता,
इसलिए फ़िलहाल आप से मुआफ़ी तलब ا
इस अहद के साथ रुख़सत हो रहा हूँ
की इस इल्म को समझने के बाद
आपके दरपेश आऊंगा ا
-Abeer ا
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