अंजान सफ़र पर चली हूँ मैं,
मेरा भटकना तो तय है।
माना कि ज़िंदगी पर्याय है ज़हर का,
लेकिन उसे गटकना तो तय है।
बना लिया जब मैंने ख़ुद को ही आईना,
फ़िर उसका चटकना तो तय है।
चुभने लगी है अब मेरी बातें सभी को,
फ़िर सबकी नज़र में खटकना तो तय है।
इश्क़ फंदा है तकलीफ़ों का,
जिसने भी किया उसका लटकना तो तय है।
गुमाँ हो चला है मुझे मेरी ख़ुशियों का,
किसी भी वक़्त क़िस्मत का पलटना तो तय है।
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