में मेरे भाव सही थे, लेकिन मेरे अल्फाज़ कही थे,
उस समय भावों का भी सैलाब मानो, जैसे उफान मार रहा था, मुझमें कही,
कई दफा लिखती और ना जाने कितनी दफा, उसे मिटाती रही,
लेकिन....
ना जाने कब, कैसे, कहां, इक जुनून सा सवार हो गया था, मुझ पर कही,
बस....
तब से लिखते लिखते बहुत अच्छे तो नही, लेकिन अब अल्फाजों को अपने भावों के साथ जोड़ना सिख लिया है मैने।
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