हम अन्जानी कोई "खता किये बैठे हैं,
जो वो हमसे नाराज हुए "बैठें " हैं,
बिच मे एक "दरिया"हैं , दरिया के एक और वो ,
एक और हम "बैठें " हैं,
उन्हे आवाज दे भी तो कैसे , दे
मै तन्हा ओर वो "महफिल" लिये बैठे हैं,
रोज हैं " ईद-मुबारक" उन लोगो,
जो तूझ "चान्द" को अपने पास लिये बैठे हैं,
जो एक नज़र भी हो उनकी हमारी तरफ,
तो लोग अपनी भोहौ पर "सिलवटें" लिये बैठे हैं,
एक माफ ना करने के एब के कारण "नितिन"
तेरे अपने- पराये तूझसे मुँह "फूलाये" बैठे हैं !!!
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