कभी जो शाम ढल जाए, मेरा गर जिक्र ना आए,
कोई फिर ढूंढ़ते मुझको मेरी, गजलों तलक जाए।
मै तुमको टूटता फिर से दिखूंगा रात तारों में,
सुनो तुम मांग लेना वो, जो तेरे हाथ ना आए।।
मेरे कुछ यार जिगरी है, उन्हें कोई बता देना,
हमारे दरमियां कोई नया अब यार ना आए।
भला वो बेवफा थी, पर मेरी पहली मोहब्बत थी,
हम उसके आज तक देखो, खतों को ना जला पाए।।
जहन में बात है, जिससे गिला मुझको अभी तक है,
मेरे जितने करीबी थे, कभी कुछ काम ना आए।
बुरे हालात पे हंसते रहे, मेरे मुसलसल जो,
ख़ुदा उनके कभी ऐसे बुरे हालात ना लाए।।
सुनो इंसान तुम कहती, जिसे दुनिया में ए जाना,
वो है जैसे किसी पत्थर में सांसें फूंक दी जाए।
मेरे शब्दों को पढ़ के, तुम मुझे क्या खाक समझोगे,
मेरे जज़्बात पढ़ लेना, कभी जो कह नहीं पाए।।
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