बर्बादी का जश्न भी मनाया है मैने यूंही,
वक्त को भी मैने गवायां है यूंही,
सही का तो थामा ना हाथ कभी मगर,
दौड़ लगाई है खूब गलत के पीछे यूंही,
बचाया ना रिश्तो को टूटने से कभी,
तर्क-वितर्क में ही फंसा रहा मैं यूंही,
ताल्लुकात को करके दरकिनार हमेशा,
बेवाफाओ पे किया है ऐतबार मैने यूंही।
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