कोई हक़ नहीं तुम्हें हर वक्त मेरी यादों में रहो, इक सकूं की नींद चाहिए, कभी तो दूर मेरी ख़्वाबों से रहो, दिल, दिमाग़, दीवार, दहलीज़, और ये कमबख्त मोबाइल... कहाँ कहाँ नही है तेरी तस्वीरें... एक सिफ़ारिश है तुमसे, कभी तो ओझल मेरी आँखों से रहो...
Ek muddat baad ye raat aayi h Kore kagazo pe ye baat aayi h Harf mazboor h aaj phirse bikhr janeko Ek muddat baad kafas se chutkr phir teri yaad aayi h.....
फिर वही शाम............ फिर वही तन्हाई तुम्हारी यादें हैं.............. फिर घिर आई बहता रहा आंखों से नीर तर-बतर होता रहा आंचल फिर रात भर होती रही मेरी और नींद की लड़ाई
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