वो परछाई नहीं, रोशनी है
वो गूंगी नहीं, बस भोली है
वो रोशन करती तेरा जहां है,
वो तुझसे नहीं, उससे जहां है,
इच्छाएं मारी उसने अपनी ,
थी जो उड़ने की,
तूने तो सोचा है वो कठपुतली,
बोली नहीं कभी वो पर तूने भी समझा कहां,
कभी मां बनकर
तोह कभी बहन बनकर उसने तुझे स्नेह दिया
कभी पत्नी बनकर उसने तेरा हाथ थामा,
तोह कभी बेटी बनकर उसने तुझे जिम्मेदारी एहसास कराया,
अब ना कभी उठाना उसके अस्तित्व पर सवाल क्यूंकि वो शक्ति साक्षात् स्वरूप,
वो एक शब्द नहीं , एहसास है,
वो स्त्री है।।
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