पल वो बड़े सुनहरे थे
जब मेरी साँसों पे तेरे पहरे थे
हमारे प्यार के रंग बड़े गहरे थे,
लौटा दो मीत, पल वो बड़े सुनहरे थे।
पल से क्यों शिकायत करूँ मैं,
वो कब किसी के लिए ठहरे थे,
इन आँखों में कभी ना दो चेहरे थे,
लौटा दो मीत, पल वो बड़े सुनहरे थे।
साहिलों पे हम थे, कभी नहीं वहाँ लहरें थी,
अश्क़ यूँ बहीं जैसे लगा नैनों में नहरें थीं,
शिक़वे थे ग़र तो हमसे ही कहने थे,
लौटा दो मीत, पल वो बड़े सुनहरे थे।
Priti Mehra
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