क्या दिन थे वो,
ना किसी चीज़ की फिकर,
ना किसी बात की परेशानी..
आंखों में थी मासूमियत,
और सीने मे थी मोहब्बत..
ना कोई छल, ना कोई कपट,
बस थी शफाकत और इंसानियत..!
आज चढ़ी है जवानी,
और दिलों में है रवानी..
पर क्यों लगता कुछ छूटा पीछे,
देखूं मुड के क्या एक बार?
कहते हैं लोग उसे "बचपन"..
पूछता हूं मै,
क्या लौटेगा वो, बन के पचपन??
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