QUOTES ON #TRUELOVENEVERDIES

#trueloveneverdies quotes

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8 JUN 2019 AT 10:20

अब लिखने की कोई ख्वाईश ना रही तन्हां दिल में
मेरे अल्फाज़ों में खुद को ढूँढने वाला कहीं खो गया है

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3 MAY 2019 AT 18:40

दो पल की बातों में उनके उम्र भर का साथ मिला
जो नहीं मिला वो नहीं मिला पर जो मिला बेमिसाल मिला

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19 MAY 2019 AT 17:01

फिर एक रात गुज़र गई सुबह होते होते
फिर वो एक बात तल्ख सरेआम कह गया
मेरा ईमान हार गया उसे तवज्जोह देते देते
ज़ालिम अपने लहज़े से कत्ल-ए-आम कर गया

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6 JUN 2019 AT 9:59

दो पल का हमसफर बन आज इम्तिहान भी ले लिया उसने
जाम-ए-इश्क़ पिला कर रात का करार भी ले लिया उसने
हिज्र के बाद शब-ए-गम में दिल की बेसुकूनी का मंजर भी खूब था
नज़रें चुराकर फिराक़-ए-यार नजरों से उनका दीदार भी ले लिया उसने

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16 JUN 2019 AT 12:06

अक्सर याद आती है मुझे उनकी बातें
पर सच कहूँ उन्हें कभी याद नहीं करती मैं

उनका चेहरा निगाहों में बस तो गया है
पर बंद आँखों से कभी दीदार नहीं करती मैं

लबों पे एक उनका हीं नाम ठहर गया है
पर उनके लिए कोई फरियाद नहीं करती मैं

आदत ना हो जाए मुझे उनके साथ की
इसी डर से अब उन से बात नहीं करती मैं

दिलासा देना सीख लिया है अब खुद को
कोई वजह नहीं बची मुलाकात नहीं करती मैं

अधुरी दास्ताँ लिख गया वो किस्मत के पन्नो पे
बंदिशे हैं कुछ ऐसी अब अरमान नहीं बुनती मैं

जाने कब बे-अदब हो जाये इश्क़ पता नहीं
बस इसलिए दिल्लगी की आस नहीं करती मैं

तसवीर से उनके कुछ शिकवे कर लेती हूँ
अब किसी के सोच की परवाह नहीं करती मैं

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25 JUL 2019 AT 11:02

फक़त एक हम हीं नहीं जिसने दिल लगाया है
कई शख़्स हैं जिसने दिल्लगी में दिल जलाया है

मिल न सका जो ख्वाबों में ना हीं उजालों में
उसकी यादों में ना जाने कितने चराग़ बुझाया है

रिवायतें भी अजीब सी हो गई इस दौर की
फासलें मिलते हैं जब किसीने खामोशी जताया है

लोग बहोत हैं यहाँ कमबख़्त ज़िंदगी के मारे
बहोत कम हीं हैं जिसने ज़िंदगी को गले लगाया है

तलबगार सब बैठे हैं यहाँ किसी न किसी के
वो भी हैं जिसने तलब में सिर्फ इश्क़ फरमाया है

जो कहते हैं यूँ सर-ए-बाज़ार ना करो गम को
उन्हीं को महफ़िलों में अक्सर रुसवाई करते पाया है

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11 JUL 2019 AT 12:24

हाथ थाम कर उन्होंने कब का छोड़ दिया
हमें रोज यही लगता है के आज छोड़ दिया

बातों से हीं नाराज़गी है गर तो ठीक है
हमने भी बात करने का बहाना छोड़ दिया

नज़रो के दरमियां आते लोग बहुत थे
हमनें उनकी मेहफिल में जाना छोड़ दिया

उफ़ ! उनकी नफरत में क्या क्या टूटा
हमने मंज़िल भी तो उनकी राह में छोड़ दिया

जिसे लिए फिरते थे हर जगह साथ साथ
उन यादों को भी अब आज़माना छोड़ दिया

तलब है उनका हर पल ज़िक्र उन्हीं का
अपनी तमाम हसरतों को दफना कर छोड़ दिया

उनकी यादों ने भी जब अकेला कर दिया
हमने अपनी तन्हाई को भी तन्हां छोड़ दिया

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22 JUN 2019 AT 11:29

मुझे उसके सवालों का कोई जवाब नहीं आता
मेरी मोहब्बत कोई उधार नहीं मुझे करना हिसाब नहीं आता

रौशनी का मोहताज़ नहीं वो चेहरे पर उसके नूर है
उसके अलावा ज़िन्दगी में मेरे कोई आफताब नहीं आता

बे-खबर हूँ मैं खुद से पर इतना तो यक़ीन है मुझे
उसके सिवा लबों पे मेरे दुजा और कोई नाम नहीं आता

इख्तियार नहीं होता किसी का किसी के यादों पर
मेरा यूँ हाल है के उसके सिवा किसी का ख्वाब नही आता

वो कोरा कागज़ नहीं उसके वजूद से मेरा होना है
जज़्बात तो हैं दिल में मगर मुझे करना इज़्हार नहीं आता

जी करता लफ्ज़-लफ्ज़ पढ लूँ उसे पर कैसी बेबसी है
उलझे हुए अल्फाज़ की तरह है कुछ समझ में नहीं आता

किसी के लबों पे उसका नाम आए मुझे मंजूर नहीं
रातें तो रोज़ गुजरती हैं पर कभी शब-ए-विसाल नहीं आता

उसकी एक झलक को दिन रात तरसता है ये दिल
सितारे बहुत हैं आसमान में मगर दीदार को महताब नहीं आता

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15 JUL 2019 AT 12:16

मेरे इज़्हार-ए-मोहब्बत को दोस्ती का पैगाम बता दिया
पता गलत है कह कर खत को मेरे हीं पते पर लौटा दिया

जवाब-ए-नामा में तासीर-ए-वफ़ा हीं मेरे नाम लिख देते
दिल भी मेरा टूटा और गुनहगार भी मुझे हीं ठहरा दिया

उनकी यादों को ता-उम्र ज़हन से नहीं मिटा सकते मगर
उन्होंने बड़ी आसानी से बीते लम्हों की यादों को मिटा दिया

काश उन्हें भुलाना मुम्किन होता तो भुला देते उनकी खातिर
ताज़्ज़ुब ! सब भुला दिया उन्होंने अदब-ए-वफ़ा भी भुला दिया

मस'अला क्या हुआ मोहब्बत न सही रफाक़त भी न रही अब
अहवाल-ए-बशर जाने बिना हीं मेरी मोहब्बत को ठुकरा दिया

पता न था इतनी गम अज़ीयत दर्द देगी उनकी मुलाकात
तर्क-ए-ताल्लुकात पर कुछ न बोल कर खामोशी जता दिया

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14 JUN 2019 AT 11:05

सुनो ! अब कहने को कुछ बचा हीं नहीं
बयां तो सब कर दिया पर किसी ने सुना ही नहीं

गुफ्तुगू आँखों से होती है कागज़ तो ज़रिया है
मगर इन नज़रों को भी किसी ने पढ़ा ही नहीं

कहते हैं फासलों से नज़दिकियां बढ़ती हैं
पर दूर रहना भी तो किसी ने कभी सहा ही नहीं

गलती कर दी दिल की बात का ज़िक्र करके
इल्म हुआ मगर दिल की इसमे कोई खता ही नहीं

हाल-ए-दिल पूछते रहते हैं हमसे सभी यहाँ
और दर्द-ए-दिल कभी किसी ने जाना ही नहीं

हक़ीम बहुत मिले पर मर्ज़ का कोई इलाज़ न मिला
बीमार-ए-गम की दवा किसी को पता ही नहीं

फितरत-ए-इंसान से वाक़िफ़ हूँ पर कुछ कुछ
कितना भी चाहा पर दर्द भी किसी से छुपा ही नहीं

तस्सली देना तो ज़माने की आदत सी बन गई है
पर किसी तरकीब से ज़ख्म अभी तक भरा ही नहीं

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