विरासत में वो तुम्हें, मेरी परवरिश का हिस्सा इस कदर सौंप गए
वसीयत में मेरा नसीब देकर, मेरे दामन में वो तुम्हारे घर का आंगन छोड़ गए
तुम इंसान, अपने होने की हिस्सेदारी, मुझे इस कदर समझाते हो
मेरी पीढ़ी की पीढ़ी तबाह करके, अपनी अगली पीढ़ी के भविष्य बनाते हो
जो सड़क के बीच, मैं आ जाऊं, तो कुल्हाड़ी से कटवा देते हो
जहां करना हो अवैध कब्जा, मेरी छाव तले पत्थर को भी देवता बना देते हो
तेरे होने ना होने से मेरे अस्तित्व में कोई बदलाव ना आएगा
लेकिन मेरे ना होने से, तेरा अस्तित्व ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगा
मैं पेड़, इंसान के जीवन को अपनी आत्मकथा में ऐसे समेटता हूं
जन्म को नीम की टहनी में पिरोकर, मृत्यु को लकड़ी की सेज में लपेटता हूं
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