कहावत है कि “सब्र का फल मीठा होता है".. किसी ने मुझसे सवाल किया और कहा कि.. क्या ज़रूरी है कि सबको मिठा पसंद हो... किसी को नपसंद भी हो सकता है,
इस बात पर मेने कुछ अर्ज़ किया है...✍️ हांजी ज़रूर क्युं नहीं.. आखिर अपने मन के उसूलों पर जीने का हक तो सबको होता है, लेकिन ज़िंदगी का खेल भी बड़ा निराला होता है.. जैसे-जैसे वक़्त बितता है स्वाद बदलता जाता है... अल्फ़ाज़ वहीं रह जाते हैं बस नज़रिया बदल जाता है, अगर सही समय पर.. सही नज़रिये से.. सब्र की किमत समझी जाए तो.. बहुत कुछ सीखा जाता है।
उड़ते रहे ख्वाबो का दिया लिए हुए कभी सच से वाकिफ़ होना ही ना चाहा हमने बस मंज़िल को पाने की आस थी कभी पाना नहीं चाहा हमने बोल देते थे पा लेंगे सब मगर प्रयास करना चाहा नहीं हमने सपने लेते रहे उड़ानो के कभी उड़ना नहीं चाहा हमने कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए बोलते रहे मगर खुद चलना नहीं चाहा हमने ताकते रहे राह अपनी मंज़िल की कभी खुद उसकी तरफ चलना चाहा नहीं हमने भटकते रहे तड़पते रहे मगर कभी इसका निवारण करना चाहा नहीं हमने ओर दोश देते है किस्मत को अपनी जब खुद उसे जगाना चाहा नहीं हमने..।।।
सवाल: कहीं न कहीं हम लोगों की बकवास सुनते रहते हैं... पर वही लोग भावनाओं को न समझ कर.. हमें बहुत ठेस पहुंचाते हैं, आखिर क्यूं सब जानते हूए भी.. हम सही-गलत की सोच में चूप रह जाते हैं ?
जवाब: बस एक बात हमेशा याद रखें... अपने अंदर के तूफान को शांत रखें, लेकिन जब यह दुनिया अपनी हदें भूल.. आपको मजबूर करने लगे... तो ज़रूरत पड़ने पर अपने तूफान के आक्रोश में.. उन्हीं के तरीकों से उन्हें बर्बाद कर दें।
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