यूँ तो आसमां में तारें बहुत हैं,
फिर भी ये चांद तन्हा बहुत है।
किसी से ना मेरा वास्ता, फिर भी,
शहर भर में मेरा ज़िक्रा बहुत हैं।
घर से निकल चलें सफर को
मंजिल को जाते रस्ते बहुत हैं।
किस ओर ले जाए राह हम को?
नज़रों के आगे कुहरा बहुत हैं।
यादों मे क्यों है जीना गुजारा
इस जिंदगी मे लम्हे बहुत हैं।
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