रखते है दिल मोम स , अंगारों पे।
हथेली झुलस गई , इस ज़िद में ।
न पिघलने दिया , जिगर को ।
दिल के अरमान , भी देखों ।
इतेलाह है , बिख़र जाने का ।
फ़िर भी , गुमां इसे सपनों का ।
पूरी शिद्दत से , सींचता गया ।
जो पूरा करे , लगाता चला ।
तो यूं , कदम कैसे अचानक फेर लूं ।
जी की भूख , भी तो इसी से मिटाऊं ।
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