दिखते नहीं वो ताले
देखें है यू तो ताले कई लटके हुए केवाड़ पर,
फिर दिखते क्यों नहीं वो ताले,
जो लटक रहे है स्त्रियों के सम्मान पर।
कानून कई छपे है संविधान के दीवार पर,
फिर दिखते क्यों नहीं वो ताले,
जो लटक रहे है स्त्रियों के उड़ान पर।
झोक दिए है स्वाभिमान को चूल्हे की आग पर,
फिर दिखते क्यों नहीं वो ताले,
जो लटक रहे है स्त्रियों के बलिदान पर।
पूजे है तुमने रूप कई हर छोटे - बड़े त्योहार पर,
फिर दिखते क्यों नहीं वो ताले,
जो लटक रहे है स्त्रियों के अधिकार पर।
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