बह्र-- 2122 1212 22
इश्क़ है मुझको इसकी राहत से
शायरी कर रही हूँ मुद्दत से।
याद आते हो हर घड़ी मुझको
दिल तड़पता रहा ये शिद्दत से।
सोचकर तुझको कहती हूँ जो शे'र
देखती है ग़ज़ल भी हैरत से।
तुम कभी शाम को चले जाओ
बैठ जाते हैं हम भी फुर्सत से।
हाल मेरा भी तुझ से मिलता है
हूँ मैं अनजान अपनी हालत से।
ठेस लग जाये ऐसा मत बोलो
तुम हो वाकिफ़ "रिया" की आदत से।
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